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Saturday, December 3, 2011

देवभूमि हिमाचल - The Land of Miracles, Demi-Gods, Beliefs, and Superstitions

कमरुनाग झील [Read Trek to Kamrunag Temple]हिमाचल में २७०० मीटर की ऊंचाई पे स्थित है और यहाँ देव कमरू का एक मंदिर है, जिसे महाभारत की कथा में रत्न्यक्ष के नाम से जाना गया है | मंदिर में आने वाले श्रद्धालु सिर्फ झील में ही चढ़ावा चढाते हैं, पैसा, रूपया, चांदी, और यहाँ तक की सोना भी | कुछ साल पहले तक वहां झील में गहने फेंके हुए दिख जाते थे, सिक्के आज भी फेंके जाते हैं | वहां एक बोर्ड लगा हुआ है जो कहता है की चढ़ावा सिर्फ झील में चढ़ाएं, ऐसा देवता का कहना है | देव कमरुनाग पूरे मंडी जिले का देवता है, और ये माना जाता है की साल की पहली बारिश देवता के आदेश/आशीर्वाद से होती है | कहानी कहती है कि एक बार कुछ डाकू आये और झील का सोना लूट के निकल लिया, उन सबकी आँखें फूट गयी, सब के सब अंधे हो गए | एक बार जहाज गया था उस पहाड़ी के ऊपर से, वो भी गिर गया और उस कहानी को देवता का श्राप मानते हुए आज तक उस पहाड़ी के ऊपर से कोई जहाज नहीं गुजरा |

यहाँ से कुछ दूर ट्रेक करने पर हम पहुँचते हैं शिकारी देवी [Read Trek to Shikari Devi]के मंदिर में जो कि ३३०० मीटर कि ऊंचाई पे स्थित है, और यहाँ बर्फ गिरती है सर्दियों में भयंकर, पांच पांच फीट| इस मंदिर कि ख़ास बात ये है कि इस मंदिर कि छत नहीं है , लेकिन सिर्फ छत न होना इसकी ख़ास बात नहीं है, ख़ास बात है सर्दियों में बर्फ गिरने पर भी अन्दर रखी मूर्ती पे बर्फ नहीं गिरती, मैं कभी शिकारी देवी गया नहीं हूँ पर मैंने अत्यधिक पढ़े-लिखे लोगों के मुहं से ये बात सुन रखी है |

बिना छत का शिकारी देवी मंदिर 

थोडा नीचे आने पे जन्जेहली (Janjehli Valley) में  एक भीम शिला है जो नाम कि तरह भीमकाय है लेकिन हाथ कि सबसे छोटी ऊँगली से हिलाने पे हिल जाती है | हिमाचल का सबसे प्रसिद्द पास, रोहतांग पास भी देवता कि तरह पूजा जाता है | कहते हैं रोहतांग पास का मतलब है रूहों का घर , यहाँ सबसे ज्यादा मौतें होती हैं सैलानियों कि, क्यूंकि यहाँ मौसम किसी भी पल बदल जाता है | हर साल रोहतांग (Rohtang Pass) खुलने से पहले देव रोहतांग कि पूजा होती है ताकि कोई त्रासदी न हो और इसी पूजा से बोर्डर रोड ओर्गनाइज़ेशन के जवानों को भरोसा आता है माइनस २० डिग्री में काम करने का|

भीम शिला, जन्जेहली वैल्ली, Source: Himrahi

बात करते हैं कुल्लू जिला कि, कुल्लू हिमाचल का सबसे रहस्यमयी जिला है| यहाँ ऐसी ऐसी कहानियां, मंदिर, इमारतें मौजूद हैं कि बस आप कहानियां ही सुनते रह जाओगे| यहाँ कुल्लू का दुशहरा होता है जिसे अंतर्राष्ट्रीय दर्ज़ा मिला हुआ है, मेले कि ख़ास बात ये है कि जब तक देव रघुनाथ ना आ जाए, ये मेला नहीं शुरू होता| वैसा ही मंडी की शिवरात्रि में हैं की जब तक देव कमरुनाग नहीं आएगा, मेला नहीं शुरू होगा|

कुल्लू जिला में जात पात का भी बहुत लफड़ा है| किसी किसी गाँव में अनुसूचित जाति वाले लोगों को गाँव में नहीं घुसने दिया जाता, कहीं कहीं गाँव में तो जा सकते हैं पर घरों में नहीं जा सकते| मंडी जिले के कुछ गाँव जो कुल्लू जिले से लगते हैं, वहां भी जात पात का प्रचलन बहुत ज्यादा है| कोई चमार जाति का इन्सान हो, पहले तो ये समझा जाए की चमार कौन है? चमार वो है जो चमड़े का काम करे (चम/चर्म = skin), अब पुराने ज़माने में जब चमड़े से काम करते थे तो हाथ गंदे होंगे क्यूंकि टेक्नोलोजी नहीं थी, मशीन नहीं थी, और ऊपर से गरीबी| तो अनुसूचित आदमी मंदिर में नहीं घुसेगा | कुल्लू के बहुत से गाँवों में जात पूछी जाती है बात शुरू करने से पहले और वहां बहुत से गाँव ऐसे हैं जो एक्स्क्लुसिवली राजपूतों या ब्राह्मणों के हैं और वहां अनुसूचित जाती के लोग जा ही नहीं सकते | लेकिन अब जब रहन सहन काफी हद तक बदल गया है तो ये रीति रिवाज़ भी बदल जाने चाहिए|

कुल्लू दशहरे में देवता कि पालकी, कहते हैं ये पालकियां अपने आप घूमती हैं, इधर से उधर

वैसे ही महिलाओं  के मंदिर में प्रवेश वर्जित होते हैं माहवारी (Periods) के दौरान, लेकिन आज जब ये टेक्नोलोजी भी बदल चुकी है, सफाई रखने के कई बेहतर और आसान तरीके मौजूद हैं, तो ये रिवाज भी अब ज्यादा मायने नहीं रखता है| पुराने रीति रिवाज़ तब तक वैलिड थे जब तक आसान तरीका नहीं था| एक तरीका नीचे देखें|


कुल्लू के लघ घाटी में एक गाँव है सेओल, वहां एक जंगल है जिसके पेड़ कम से कम सौ साल पुराने हैं,  ये सारा  जंगल देवता का है और एक पत्ता भी वहां तोड़ना मना है उस जंगल से| पकड़े जाने पे मंदिर में पेशी लगती है और जुर्माना अलग| अब सोचा जाए तो सौ साल पुराने जंगल को बचाने के लिए कोई कहानी तो बनानी ही पड़ेगी, तो देवता का नाम दे दो और फिर कोई कुछ नहीं करेगा| बिना चालान होने के डर के लोग हेलमेट नहीं पहनते तो जंगल को तो बिना डर के लोग तहस नहस कर देंगे, तो इसलिए देवता का नाम जरुरी है इतने पुराने जंगल को बचाने के लिए| कई गाँवों में देवता के नाम पे हेरिटेज कंजर्व भी हुई है, इसमें कोई दो राय नहीं |

यहाँ से चले जाएँ किन्नौर कि और तो वहां भी यही कहानी है, देवी देवता की | एक जगह है तरंडा ढांक (Taranda Temple) , ढांक पहाड़ी में खाई को कहते हैं| शिमला से किन्नौर में घुसते ही तरंडा ढांक आती है, एकदम सौ-दो सौ फीट खड़ी पहाड़ी और नीचे उफनती हुई सतलुज नदी, गिरने पर बचने का कोई स्कोप नहीं| तो तरंडा मंदिर के पास आने जाने वाले हर एक गाडी रूकती है, जो नहीं रुकता वो सतलुज में समा जाता है, ऐसा लोगों का मानना है| जिन लोगों को इस बारे नहीं पता होता वो लोग दैवीय प्रकोप से बच जाते हैं, पर जो जान बूझ के न रुके, वो नदी में समा जाता है, ऐसा माना जाता है, किन्नौर में इस मंदिर की बड़ी मान्यता है | बात सही भी है, किन्नौर कि सडकें हैं तो चौड़ी पर अगर गिर गए तो मौत निश्चित है, इसलिए तरंडा ढांक का डर/भरोसा आदमी कि जान बचाने में काफी कारगर साबित होता है|

ऐसा ही स्पीति में कुंजुम पास में होता है, एक मंदिर है कुंजुम टॉप (Kunjum Pass) पे, वहां आने जाने वाली हर गाडी रूकती है, यहाँ तक की अँगरेज़ भी, नहीं तो कुंजुम की घुमावदार सडकें लील लेती हैं इंसान को| ऐसा ही मंडी से मनाली जाते हुए हणोगी माता के मंदिर में होता है , जो रुका नहीं वो रुकता  भी नहीं सीधा ऊपर पहुँच जाता है, ऐसा माना जाता है |

 कुंजुम टॉप, पीछे मंदिर दिख रहा जिसके इर्द गिर्द चक्कर लगाके लोग आगे बढ़ते हैं |

तरंडा ढांक, ऐसी सड़कों पे भरोसा (खुद पे,किसी और पे) बड़ा जरुरी है, कई सौ मीटर नीचे सतलुज नदी बहती है 

यहाँ सतलुज और स्पीती नदियों को भी देवी कि तरह पूजा जाता है | यहाँ पहाड़ों की पूजा होती है | यहाँ पत्थर, मिट्टी, जंगल सब की पूजा होती है| जितने भी ऊँचे ऊँचे पहाड़ है, पास है, टूरिस्ट प्लेसेस हैं सब जगह आपको मंदिर जरुर मिलेगा| और कई जगह तो सिर्फ मंदिर होने कि वजह से टूरिस्ट प्लेस बन गया है |

मेरे ख्याल से यहाँ पूजा करते हैं प्रकृति कि, कहीं नदी कि, कहीं पानी कि, कहीं बर्फ कि, कहीं पत्थर कि क्यूंकि हमें मालूम है कि सब प्रकृति के अधीन है, प्रकृति एक ऐसी रहस्यमयी रचना है कि जिसे बूझ पाना अभी तक मुनासिब नहीं है, पहाड़ों में तो बिलकुल भी नहीं, तो सबसे अच्छा तरीका यही है कि भरोसा रखो, और काम किये जाओ| बस ये भरोसा अन्धविश्वास नहीं बनना चाहिए |

कहाँ से ये कहानियां जन्मी, ये घटनाएं सच में हुई या नहीं, किसीने देखा या दिमाग का फितूर है, इस सब पे गौर ना करें तो हम देखेंगे कि पहाड़ों में प्रकृति पे भरोसा करना बहुत जरुरी है, ऊंचाई पे बसे घर, पहाड़, बादल, बर्फ, नदी, नाले, कुछ भी, कभी भी विपदा ला सकता है, और कई कई सालों  सिर्फ भरोसे के दम पे इंसान ने काफी कुछ कर दिखाया है| कुंजुम, रोहतांग पास की सडकें, किन्नौर का मौसम, कुल्लू के बादल, इन सबका कोई भरोसा नहीं है|  कोई भी इन्सान हो, उसे हिम्मत , विश्वास होना बड़ा जरुरी है इन जगहों पे की कुछ गलत नहीं होगा, और शायद इसलिए ही ये मंदिर बने , ये रुकने - रोकने की प्रथाएं चली, की देवता ने आशीर्वाद दे दिया है, अब कुछ गलत नहीं होगा, ये एक भरोसा पैदा करने की टेक्निक थी जो धीरे धीरे अंधविश्वास बन गया|

लेकिन ये सब जरुरी भी है और नहीं भी|

वक़्त के बदलने के साथ रीति रिवाज़ भी बदलने जरुरी हैं क्यूंकि रीति रिवाज़ एक लिमिटेड समय तक ही वैलिड  रहते हैं उसके बाद अन्धविश्वास बन जाते हैं| जात पात, देवता का श्राप, देवता की नाराजगी ये सब बातें गौर करने लायक हैं की अब जब हमारे रहने , खाने, पीने, और जीने में काफी हद तक बदलाव आ गया है, क्या जरुरी नहीं है की अब इनपे निर्भरता कुछ हद तक कम की जाए?

देवता के आदेश से कई बार सुपर अड्वेंचर भी हो जाता है, यकीन नहीं आता तो ये देखिये, भुंडा महायज्ञ [Read More About Bhunda Story] का एक विडिओ जोकि २००६ में शिमला के रोहडू में आयोजित हुआ था|


भुंडा महायज्ञ, मौत का खेल, देवता का भेस, रोहडू (शिमला)

P.S: One of my friends has done her research work in the aforementioned regions during her Masters and she has experienced most of these things herself. She has worked in the remotest villages of Kullu Valley, Malana Village, Kinnaur, Upper Mandi, and Old Manali Town. Her research has revealed many astonishing facts about the upper reaches of Himachal Pradesh. Kullu valley is one of the most interesting places of Himachal I have visited. Do you know that they call themselves, the Land of Tharah Karadus?

Friday, June 17, 2011

Jalori Pass (जलोड़ी पास ) & Elektrik Mahadev (बिजली महादेव) - Biker's Paradise

जीवन का ज्ञान - Use Dipper @ Night


चलना है या नहीं?, हाँ या ना में जवाब देना, यहाँ भूमिका मत बांधना, येस और नो?
मेरे पाँव में चोट लगी है, अगले हफ्ते 75 -300 लेंस भी आ जाएगा, तब चलेंगे, जय पाल ने एक नीचे का 'सुर' लगाते हुए कहा, जोकि मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया |
हाँ या ना, मैंने आँखें फाड़ कर कहा |
देख लो |

और इस तरह मैंने निश्चय किया क़ि मैं अकेला ही जाऊँगा, जिद एक बीमारी है जो आदमी से अक्सर 'काम' करवा देती है, सही गलत का मालूम नहीं पर काम जरूर हो जाता है |
अब हिमाचल के सबसे ज्यादा ढलान वाले पास पे जाना हो, वो भी अकेले , तो डर तो लगेगा ही, तो मैंने सोचा क़ि बरोट के honorary citizen , सन्नी से बात क़ी जाए | फोन किया तो पता चला क़ि महाशय क़ी IAS क़ी परीक्षा है शिमला में| पर अब मुझे कोई बलि का बकरा चाहिए था, और सन्नी से अच्छा बकरा कोई हो नहीं सकता था क्यूंकि ऐसी जगह जाने के लिए, वो एक नहीं हजार बार कट सकता है, एकदम ख़ुशी से, अपनी मर्जी से | सन्नी को मनाया गया, वो पहले ही मान चुका था, बस उसको भरोसा दिलाना था क़ी भैय्या तुम मान गए हो |
तो कार्यक्रम बन गया कि अगली सुबह ६ बजे सवारी निकल पड़ेगी ताकि हम दोपहर - दोपहर में जलोड़ी पास पहुँच जाएँ | शाम तक कार्यक्रम फिर बदल चुका था क्यूंकि सन्नी के अन्दर देशभक्ति जाग उठी थी और वो collector  बनने के ख्वाब देखते हुए ना जाने का इरादा कर चुका था |

खैर, जिद है तो जिद है, मैंने सोचा कि अब अकेले ही निकला जाए, सुबह उठते ही घोड़े पे सवार हुआ और निकल लिया मंडी-सुंदरनगर कि हसीन वादियों कि ओर | गुस्से और जिद में मेरी स्पीड कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी थी ओर १०० किलोमीटर का सफ़र मैंने डेढ़ घंटे में पूरा कर लिया | वहां मुझे एक आशा कि किरण और  दिखी ओर मेरा एक दूसरा मित्र, मैंने उसकी बलि लेने का प्रोग्राम बनाया| इस तरह से मुझे एक दूसरा साथी मिल गया, जो मेरे साथ घूमने चले , लेकिन तब तक कहानी में एक ओर ट्विस्ट आ चुका था ओर सन्नी की देशभक्ति उड़ चुकी थी ओर अब वो 'into the wild ' बनना चाहता था , तो इस तरह से जहाँ मुझे अकेले जाना था, अब तीन सवारियां तैयार हो चुकी थी, दो घंटे बाद सन्नी महाशय सुंदरनगर पधार चुके थे, ओर हम लोग निकल पड़े हिमाचल के सबसे ढलानदार पास कि ओर|

पंजाब ओर हरयाणा के लोगों कि वजह से हिमाचल का टूरिस्म डिपार्टमेंट काफी पैसे बना रहा है, पर ये लोग सड़कों पे काफी ग़दर डाल के रखते हैं | जहाँ मन किया वहीँ गाडी रोकी, डिक्की खोली ओर 'क्यूँ पैसा पैसा करती है' गाना लगा के लगे नाचने | दिक्कत इससे ये होती है कि बाकी के लोगों को दिक्कत  हो जाती है, पर किसकी गलती है ये पता करने में सड़क पे जाम ओर भी भयंकर हो जाता है, इसलिए जो चल रहा है चलने दो | तीनो भाई आराम से औट कि सुरंग के पास पहुंचे ओर हमारा रास्ता मनाली जाने वालों से अलग हो गया | नेशनल हाइवे -२१ पे बाईक चलाने में जो आनंद है वो पानीपत के फ्लाई ओवर में भी नहीं है , पर हमारा रास्ता अलग हो चुका था | औट से बंजार जाने वाली सड़क एकदम सीधी तो नहीं है, पर ये सड़क  उम्मीद से काफी अच्छी थी | जैसे ही हम बंजार के नजदीक पहुंचे, हमें दिखाई दिए 'save tirthan valley ' के बोर्ड , अब वेल्ली  को सेव करना है तो वेल्ली  में तो जाना ही पड़ेगा, तो हम घुस गए valley के अन्दर, valley का आखिरी पॉइंट था बदाहग, शाम के चार बज रहे थे ओर जलोड़ी पास जाना अब ठीक नहीं था, तो हमने इरादा किया कि हम लोग ' हिमालयन नेशनल पार्क' में एक रात बिताएंगे ओर अगली सुबह वहां से जलोड़ी पास के लिए निकलेंगे, पर वक़्त कि मार आदमी को कहीं भी पड़ जाती है, हमें भी पड़ी | ४० किलोमीटर ऊपर नीचे घूमने के बाद, दो सरफिरे लोगों से भिड़ने के बाद, उनमे से एक को १०० रुपये देने के बाद हम लोग शाम को बंजार पहुंचे | इस बीच सन्नी एक बूढ़े आदमी को बचाने के चक्कर में ठुक चुका था, ओर उसकी पसलियाँ दर्द कर रही थी | मैं अपने दोस्त को जीवन का ज्ञान देने के चक्कर में रास्ते से बाईक समेत उतर गया | हालाँकि मैंने अपने दोस्त को चलने से पहले जीवन का एक ज्ञान ओर दिया था कि 'सवारी ना सिर्फ अपने सामान बल्कि अपनी जान की भी खुद ही जिम्मेदार है', इसलिए हम दोनों की जान बच गयी क्यूंकि जब बाईक गिरी तो उस पर कोई भी सवारी बैठी नहीं थी, हम दोनों हवा हो चुके थे |

 Save Tirthan Valley - Don't be an ass | Behave like a human being

 
बेस कैंप -साईं-रोपा  काम्प्लेक्स 

रास्ते में एक लड़के ने हमें मदद कि पेशकश की, वो हमें टेंट, स्लीपिंग बैग दिलवाएगा ऐसा उसका कहना था, आखिर में उसको सौ रुपये देके विदा करना पड़ा की भाई जान छोड़ दो हमारी , नहीं तो वो चाहता था की हम उसके साथ उसकी मासी के घर रुकें, वहां खूब मजा आएगा, ऐसा उसका कहना था, पर मजे के चक्कर में ७ बज चुके थे, रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, बाईक में पेट्रोल नहीं था ओर आस पास ५०-५० किलोमीटर तक कोई पेट्रोल पम्प भी नहीं था | रात हुई, एक दो कौड़ी के रेस्ट हाउस में अच्छा सा रूम मिल गया | शराबियों को शराब कि जरुरत थी, तो शराब ढूंढी गई | नेशनल पार्क जाना कैंसल हो चुका था क्यूंकि वहां जाने के लिए दो दिन चाहिए, हमारे पास दो दिन नहीं थे |

अब तक मैं कई पहाड़ी इलाकों में घूम ओर घुस चुका हूँ, पर बंजार अलीबाबा कि कहानियों का गाँव लगता है, सब लोग शराबी लग रहे थे ओर सब लोग हमें देख रहे हैं, ऐसा लग रहा था | हालांकि सबको यही लगता है कि दूसरा आदमी उनकी तरफ ही देख रहा है, उनके बारे में सोच रहा है, जबकि ऐसा कभी होता नहीं है, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं, पर बंजार सिटी में, सबके पास टाइम था, हमारी तरफ देखने का ओर हमारी तरफ घूरने का, हमने चुपचाप शराब उठाई ओर कमरे में खुद को बंद कर लिया| मेरा दोस्त कुछ जांबाज़ बन रहा था, तो उसको जिंदगी का एक ओर सच सुनाया गया कि भैय्या अनजान जगह में पोलिस पहले पैसे ले लेती है, फिर नंगा करके मारती है, उसने शराब ओर पोलिस कि मार को अपने दिमाग में वजन किया ओर शराब से हाथ मिला लिया |

शराब पीने के बाद आदमी रंगीन हो जाता है, फिलोसोफेर टाईप, सन्नी का खून ख़तम हो चुका है ओर सिर्फ शराब बची है अन्दर, तो उसको ज्यादा  फरक नहीं पड़ा, पर मेरा दूसरा दोस्त अब भगवान्  हो चुका था ओर उसने उपदेश शुरू कर दिए थे, थकान ज्यादा थी ओर भूख भी, इसलिए उपदेश जादा देर नहीं चले ओर हम सो गए | मौसम खराब था, ओर सुबह होते होते बारिश शुरू हो गयी, कुल्लू में अक्सर बादल फटा करते हैं, सुबह ४ बजे जब मेरी नींद खुली तो बहार प्रलय कि बारिश हो रही थी, मुझे आधी नींद में यही ख्याल आ रहे थे कि , 'बंजार में बादल फटा २०० लोगों कि मौत' | जैसे तैसे बादल गए, मौसम खुला ओर सुबह सात बजे हम जलोड़ी कि ओर रवाना हो लिए | जैसे ही हमने बंजार छोड़ा, रास्ते में छोटे छोटे, cottage टाईप गेस्ट हाउस दिखने लगे, ओर हम अपनी किस्मत को कोसने लगे कि रात को यहाँ रुके होते तो जीवन में नया सवेरा आता |

अब हमें मिलना था एक नए दोस्त से, जोकि बंजार वेल्ली  में MyHimachal के साथ जुड़ के देश-प्रदेश में चेंज  लाना चाहते हैं , पदम् जी, उम्र ३१ साल, लेकिन energy २५ साल के लौंडे से भी जयादा| उनसे राम -सलाम हुई, फिर उनको भी एक बाईक पे बिठाके जलोड़ी कि ओर ले जाया गया, तीन का काम वैसे भी ठीक नहीं होता, तो हम तीन से चार हो गए, पदम् जी भी ख़ुशी ख़ुशी हमारे साथ हो लिए| बंजार valley में लहसुन खूब दबाके उगता है ओर लोगों ने आने घरों में लहसुन कि गांठें बात के राखी होती हैं, सुखाने के लिए|



ऊपर कि ओर जाते हुए हाथ सुन्न हो चुके थे, दाढ़ी में धुंध जम चुकी थी और देखने के लिए दो आँखें कम पड़ रही थी | पर बाईक जलोड़ी पास कि चढ़ाई पे फ़िदा हो चुकी थी ओर सन्नाटे में एकदम ऐसा लग रहा था कि ये सड़क सिर्फ हमारे लिए ही बनी हो | जैसे ही जलोड़ी पास पहुंचे , जीवन रंगीन हो गया | पास से एक तरफ great हिमालयन पार्क कि चोटियाँ  दिखती  हैं, तो दूसरी  तरफ शिमला जिला  के दलाश  के सेब   के बगीचे  | अन्दर जंगले  में घुस जाओ  तो खुदा भी दिख  सकता है | पर हमने पदम् जी बात मानते  हुए रघुपुर  फोर्ट  जाने का मन बनाया | किले देखने में मुझे बड़ा  आनंद मिलता है, किले राजा  बनवाता  था अपने लिए, अपने साम्राज्य  के लिए, किले तो गए, राजा भी गए, पर जिन  मजदूरों  ने वो किले  बनाय , दूर दूर से पत्थर   ढो के, उनकी जिंदगी तबाह  हो गयी |

Bone Chilling 'Summers' - Numb Fingertips and Frozen Khopdi (खोपड़ी)


 
जीभी गाँव 



खैर, किले तक जाने के लिए दो घंटे कि चढ़ाई चढ़नी  थी, जिसको  चढ़ते  हुए सांस  बस ख़तम ही होती गयी | पहाड़ी लोगों से जब भी पूछो कि कितनी दूर और है तो जवाब मिलता है १५ मिनट , मेरी यही राय है कि १५ को दस से गुना कर लो, कम से कम उतनी देर तो लगेगी ही | लेटते गिरते पड़ते हम किले तक पहुंचे ओर किले को देखकर कोई ज्यादा ख़ुशी नहीं हुई | आधा किला सराय बन चुका था, concrete technology you see , और बाकी किले का सत्यानाश हो चुका था, शायद राजा गरीब था, इसीलिए  छोटी दीवारों से ही काम  चला  लिया करता था|

 
रघुपुर फोर्ट से नजारा 

 
रघुपुर फोर्ट - II, सामने हिमालयन पार्क की चोटियाँ दिख रही हैं 

वापिस लौटते वक़्त पदम् जी से उनके जीवन कि कहानी जानी, तो भाईसाहब के पिताजी गिओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में काम करते थे, पूरा भारत देखा, तरह तरह के विद्यालयों में पढ़े, मतलब कि बचपन का पूरा मजा उठाया, पर वक़्त कि मार किसीको भी, कहीं भी पड़ सकती है, [शायद] उनको भी पड़ी, जमीनी फसाद हुए, घर वापिस आना पड़ा, पढाई लिखी छोड़ के, नहीं तो जो आदमी चंडीगढ़ पढता हो, वो वापिस क्यूँ आएगा पहाड़ों में, पर पदम् जी ने MyHimachal ज्वाइन किया, जीवन को नयी पटरी पे ले आये| अब उनका एक ही ख्वाब है जीवन में, उनके बच्चे ओर शेहेर के बच्चे सबको एक जैसी शिक्षा मिले, उनके बच्चे वैसी लडाइयों में ना पड़ें, जैसी लडाइयों में उनके पुरखे पड़े | अब जमीन साथ तो कोई लेके नहीं जाता, पर जमीन के चक्कर में जिंदगी ख़तम हो जाती है | उन्होंने हमें बताया कि कैसे वो यहाँ गाँव गाँव में जाके हेल्थ मेला चलते हैं, लोगों को बीमारियों के बारे में बताते हैं| उनका सपना है कि वो एक विद्यालय adopt करें ओर उसको एक आदर्श विद्यालय बनाएं ताकि ९ प्रतिशत कि अंधी दौड़ में अंधे होके भागते लोगों को पता चले कि अगर स्टुडेंट अच्छा होगा, तो सब अच्छा होगा, डरपोक स्टुडेंट के लिए ९०० प्रतिशत growth रेट भी कम पड़ जाएगा |
आदमी अपने लिए बहादुर बने बस, दुनिया तो चल ही रही है :)

 
नरेश, पदम् जी, तरुण |

जलोड़ी पास कि उतराई में साफ़-साफ़ लिख रखा था कि कृपया पहले गेअर में चलें क्यूंकि कई कई जगह पे ६० डिग्री का स्लोप है, पर जिस गाडी में तेल ना हो, ओर पेट्रोल पम्प ५० किलोमीटर दूर हो, उस गाडी वाले को मौत से नहीं डरना चाहिए, तो हमने जांबाजी (बेवकूफी) दिखाते हुए पूरे १३ किलोमीटर न्यूट्रल ही उतार दिए, जान बच गयी, नीचे पहुँच गए, दिल को काफी सुकून मिला |

और एक अचम्भा, Symbiosis का स्टुडेंट जीभी में, जीभी एक गाँव है ओर वहां MyHimachal का एक दफ्तर है , मास communication का स्टुडेंट सुमेध, वहां अपनी जिंदगी के बेहतरीन ६ हफ्ते बिता रहा है, जान कर ख़ुशी हुई ओर भाई साहब से मिलने कि इच्छा भी प्रबल हो गयी | 

ACDC को salute करने  वाली टी- शर्ट पहेन के कोई जीभी में घूमेगा, ऐसा अंदाजा नहीं था, but as Sumedh said, you have to start somewhere. 
  
Facts about Sumedh: Belongs to Maharashtra, cannot speak Hindi well, and making pahadi people understand his style of Hindi is a challenging job for sure.

He was surprised to know that people belonging to his age group (19-20) don't know anything about AIDS and other sexual transmitted diseases. They can't speak well in Hindi or English, they study in same class for years because they fail in English, 8th and 9th class English. Casteism is still dominant in this region of country and people are ready to chase away 'lower caste people' but happily take 'ghee and milk' from them. He stayed alone for six weeks in that village and when I asked about his work and stay in Himachal, he said I am perfectly happy here because I have done something worth doing with my life. 

Just imagine, you meet a guy from Jeebhi, who is 21 years old and does not know about AIDS, does not know about AIEEE, IIT, NIT, DU SRCC 100% Cut Off, let alone having a Facebook account and complaining about monotonous life, he is still busy telling his caste to others. 
And before you go and ask for water or help in the valley, make sure you know about you caste because if you don't, you will feel bad.


AC~DC- We Salute 'you'
 
Well, one of my friends, who owns/runs a web development company decided that he will do something for the education scenario. He is already designing new website for MyHimachal.  My best wishes with him.

अब रात हो रही थी, और जाना था बिजली महादेव, कहते हैं वहां हर साल बिजली पड़ती है, शिवलिंग टूटता है, हर साल नया बनता है, फिर बिजली पड़ती है, फिर टूटता है ओर साईकल चला जा रहा है | बचपन में मुझे किसीने कहा था कि बिजली महादेव में जाके चिलम पियो तो साक्षात् शिव के दर्शन होते हैं, खैर कुल्लू पहुँचते पहुँचते शाम हो गयी, कुल्लू से ३१ किलोमीटर दूर बिजली महादेव है, रास्ता एकदम टाप क्लास है, बाईक वालों के लिए जन्नत | शाम ६ बजे बिजली महादेव  पहुंचे, एक घंटे का ट्रेक और है, हालत ढीली हो गयी, पर जिद है तो जिद है |

चढ़ते गए, एक दुसरे को गाली देते हुए, ऊपर पहुंचे, ऊपर का नजारा = अद्भुत |
एक तरफ पारबती ओर दूसरी तरफ ब्यास, मधुर मिलन हो रहा था दोनों नदियों का ओर बिजली महादेव से नीचे देखकर छोटा मोटा शिवजी तो मैं भी खुद को फील कर ही रहा था | जल्दी  जल्दी वापिस चले, रात हो चुकी थी, ओर इरादा था कुल्लू से सीधा सुंदरनगर जाने का, पर आदमी का शरीर थक जाता है , traveler कि स्पिरिट थके ना थके | 

 
ब्यास और पारबती का संगम - विहंगम दृश्य

रास्ते में एक और ग़दर था, लोगों ने गाड़ियाँ बड़ी बड़ी ले रखी हैं, पर मैं शर्त लगा के  कह सकता हूँ  कि आधी जनता को ये नहीं मालूम कि dipper किस बला का नाम है | थोड़ी देर तो हम शरीफों कि तरह चलते हुए, पर जब हद हो गयी, तो मीटिंग हुई ओर सन्नी ने एक सुझाव दिया कि नीचे ब्यास में मरने से अच्छा है कि दायें हाथ को ही चला जाए, अगर भिड़ भी गए किसी गाडी से तो कम से कम घर वालों को लाश तो मिल ही जाएगी ब्यास में तो बस कपडे ही हाथ लगेंगे , तो अब मौत के परवाने उतर चुके थे सड़कों पर | हमने अमेरिकेन ट्राफिक सिस्टम फोल्लो करना शुरू कर दिया, सामने से आने वाले गाडी जब तक लाईट लो ना करे, हम सामने से नहीं हटेंगे, ओर जो लो बीम ना करे, वो पक्का मूर्ख होगा जिसको पता ही नहीं होगा कि लो बीम करते कैसे हैं, उसको माँ बेहेन कि गाली, साथ में एक दो पत्थर, तोहफे के रूप में | 

यकीन मानिए, रात में कुछ भी नहीं दिखता अगर बीम हाई हो तो, तो अगर आपके पास कोई स्विफ्ट, डिजायर, i10, i20, स्पार्क, ट्रक, बस या कोई भी गाडी हो, देख लें, सीख लें कि उसमें लो बीम कैसे होती है, आपको और  सामने से आने वाले को अच्छा लगेगा | 

सुंदरनगर  में ५ घंटे  की नींद और फिर अगली सुबह सवारी फिर चल पड़ी, एक अनजान जगह कि ओर|

Manual Lift - Desi Style
A wonderful article by Sumedh Natu about a wonderful school, read here

Friday, April 8, 2011

The Road Less Traveled - Boat and River and People @ the Banks of Beas

The FotoGrpaher, standing in the silent waters and the subtle flow of water is disturbed as we see the waves and ripples and designs at the point of intersection of feet and water


Welcome


Whatever has happened spontaneously in my life [so far] has always remained good. As we say, ended up in good, this statement fails when I do things spontaneously because spontaneous and heart-felt things have always stayed inside my heart and mind as a long standing, unforgettable memory. So this trip was a spontaneous, unplanned and just-happened trip, that's what I meant, in simple words.

I have seen numerous rivers, dams, check dams, canals, lakes jungles and deserts, well no deserts as of now. [If we consider lots of silt a desert, then yes ;)] I have always liked places and what I witnessed during my last trip was just beyond words, unexplainable.If I am asked to tell what is my favorite place of the month is, then I would definitely rank this place at the top, but no one is going to ask me, so I am not telling you the ranking standings.

We [I + JP] decided to take a break from our not-so-regular life and decided to visit some new place in our vicinity. Hamirpur is notorious for having nothing worth tourist interest so we ended up in dropping the plan and continue to sulk in our room. Then one good friend suggested us this beautiful place, which he thought was beautiful and we did not.

Amtar Cricket Stadium

Not beating around the bush anymore and coming to the point, name of the place is Amtar, popularly known as Amtar Ground because we have a cricket ground at this place and training camps are organized by the state government to train new Sachin's and Yuvraj's and Nehra's too ;)

Men @ Work

On a side note, do I know name of any Hockey Ground in our state, district or country, well yes Major Dhyan Chand Hockey Stadium, and that's all I know.

The Place


SpotLight

On the Shimla-Dharmshala HIghway, NH-88, when you just cross the bus stand going towards Dharamshala at the Nadaun Town, you see a huge gate on your right hand side that welcomes you and asks you to visit the famous cricket ground.

Ranji matches are frequently played here and most of the times Himachal State team ends up losing them, I hear they once lost to the Nagaland Cricket Team, if they have any cricket team playing at the Ranji's at all. ;)

You have to take a detour from the National Highway and move into the single lane road for One 'green and windy' kilometer. There you will see a cricket stadium with huge walls and boundaries. However you are not supposed to stop because there is no one to stop you, you get inside the stadium, park your vehicle, ask for permission if you see anyone there, otherwise feel free to park the car/bike/scooter [I am not sure about trucks though]

The stadium is nicely built and most of times one can find players playing there. However, the stadium was not our main motive of visiting Amtar, after all we have won the World Cup now, so there is no point in watching IPL or local level cricket or whatever.

The Other Side of River

The main motive was the majestic river Beas, which happens to flow from this place and makes it an amazing sight. I have never understood the flow of Beas, it originates from Manali and then I don't understand how does it reach Hamirpur District but anyways, I have not understood flow of Ganga, Sutlej, Cauvery or Godavari either, so nothing much to worry about here.

The Story

Walk few meters from the stadium and you happen to see a nice landscape with sand in the front-ground, water in the center-ground, and village in the background [hope you got it]. The Beas flows silently, and if I have to explain in detail, the river does not flow at all. The water is silent, the river-bed stones are still, the sand is still, even the trees are still at that place. On the other side of the river, we have a village where kids play cricket and we have a temple and we have cattle and fields and almost everything similar to this side of the river. The river does not run deep and it is some 15-20 meters wide. There is an old boat that takes people from one side to another. The old uncle oaring the boat was 55 years old and what he could do with 15 people on-board, I cannot do at 25. But yes, then I cannot do so many other things as well, so nothing to worry about.

Boat Ride

Chaotic Silence

The fair is 5 INR per trip per person and in between those trips people talk. They share their lives, their work, old days when boating was the sole medium of transportation, when kids used to start their study not before 7 years because the schools were at least 10 km away from their village and sending young ones on foot was not a wise thing to do.

Then there was an old lady who runs a sewing center in her village and she has to go to the far end of the town to get stuff for her students and employees. She was carrying something on head, which I after analyzing it carefully in terms of weight, offered to carry for her. She told me stories about her village. Village is connected to the roads but buses are not frequent, bus fare is also very high and they can't afford spending 1 INR per km. She also told me that we have a temple in the village. Few years ago people from all the villages , at least 15-20 villages used to commute through boat because there were no roads at all. During rainy seasons, Beas is very dangerous and they have to walk all the way to their offices, shops, courts and ration depots because boats cannot handle the extreme flows of Beas. I decided there and then that I will come back in the rainy seasons too. Still-waters and mad waves are just two extremes and watching extreme ends of the same thing has always fascinated me.

Reflections

The sun sets and the boat stands still in the water because everyone has retired for the day. I, the sun, the water and perhaps the air surrounding the river too.

I can't conclude this trip because for me its not yet over. The silence outside has made me chaotic inside.