Tuesday, September 23, 2008

इक ख्वाब



इक ख्वाब देखता हूँ मैं, इक गाँव देखता हूँ मैं,
मिलता जहाँ खुदा है, वो राह देखता हूँ मैं|

इंसान देखता हूँ मैं, जो "मुहब्बत" करे है ख़ुद से,
हर आदमी "खुदा" है, वो जहान देखता हूँ मैं|

हाँ देखता हूँ ख़्वाबों को हकीकत में बदलता,
मिल जाए सबको "सब कुछ", वो ख्वाब देखता हूँ मैं|

सपनों की है ये दुनिया, कहता है मुझसे क्यूँ "तू",
कर ले इन्तहा जुल्म की , उस में भी अपनी "रजा" देखता हूँ मैं|

©copyright protected 1985-............

Thursday, September 18, 2008

जिंदगी


वो पीपल के पत्ते, वो चाँद रात का,

वो बात यार की, वो साथ प्यार का



वो "चप्पलों" के तकिये, वो बिस्तर सड़क का,

वो रोशनी की बूँदें, वो आँचल फलक का



वो रंग दोस्ती के,वो ख्वाबों की बस्ती,

महल वो जिंदगी का, बस याद आते हैं





वो चलना बस अकेले, वो ख़ुद से करना बातें,

"शैतान" से झगड़ना, "खुदा" से मुलाकातें



कुछ टूटते से सपने, कुछ पूरे होते वादे,

कुछ नवेले से रिश्ते, कुछ झूठे से वो नाते



वो रोज "ख़ुद" से मिलना, वो शाम जिंदगी की,

"सूरज" का रोज उगना, बस याद आते हैं



©copyright protected 1985-............



This poem enjoys my four years “lived” in my college and this poem is only “for and because of” my friends. I wanted to write more and more lines but could not find enough words to summarize my life in “few” words, so this is just a “bit” of my Life. May be you will like it.




Tuesday, September 16, 2008

इक खुदा था



इक खुदा था जो करता था,

मुरादें पूरी मेरी

जाने क्यूँ मिट गया वो,

जाने क्यूँ गुम गया वो



इक सनम था जो चाहता था,

दिल~ओ~जान से मुझको

जाने क्यूँ बदल गया वो,

जाने क्यूँ पलट गया वो



इक था मैं जो बुनता था,

हसीं ख्वाब कभी

न रहा अब मैं हाज़िर,

न पूरा हुआ मेरा ख्वाब वो



बदल गया है अब खुदा भी,

जाने कब से

न सुनता है बातें मेरी,

न करता है गुफ्तगू वो



क्यूँ होता है ऐसा अक्सर,

इस जहां में

न बन पाता है इंसान कोई,

न हो पाता है कोई, खुदा वो


©copyright protected 1985-............


Tuesday, September 9, 2008

नामुमकिन कुछ भी नहीं


अक्सर पूछा करता हूँ मैं खुद से,
क्यूँ ख्वाब सजाना मुश्किल है
क्यूँ मुश्किल है खुद से लड़ना,
क्यूँ तन्हा चलना मुश्किल है.

क्यूँ खडा अकेला हूँ मैं भीड़ में,
क्यूँ मेरा छिपना मुश्किल है,
क्यूँ अपनी ही धड़कन को सुनना,
कुछ कुछ सा नामुमकिन है.

क्यूँ होते हैं रिश्ते -नाते,
जो बांधे फंसें हर दम मुझको.
क्यूँ अपनों को अपना कहना,
बस यह भी तो नामुमकिन है.

क्यूँ आसान है कहना सुनना,
क्यूँ कुछ भी करना मुश्किल है.
क्यूँ आसान है हर पल मरना,
क्यूँ एक पल जीना मुश्किल है.

अक्सर पूछा करता हूँ मैं खुद से,
क्या जीना भी नामुमकिन है.
बस एक आवाज मैं सुनता हूँ,
मुमकिन है, हाँ मुमकिन है।
©copyright protected 1985-............