Friday, June 17, 2011

Jalori Pass (जलोड़ी पास ) & Elektrik Mahadev (बिजली महादेव) - Biker's Paradise

जीवन का ज्ञान - Use Dipper @ Night


चलना है या नहीं?, हाँ या ना में जवाब देना, यहाँ भूमिका मत बांधना, येस और नो?
मेरे पाँव में चोट लगी है, अगले हफ्ते 75 -300 लेंस भी आ जाएगा, तब चलेंगे, जय पाल ने एक नीचे का 'सुर' लगाते हुए कहा, जोकि मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आया |
हाँ या ना, मैंने आँखें फाड़ कर कहा |
देख लो |

और इस तरह मैंने निश्चय किया क़ि मैं अकेला ही जाऊँगा, जिद एक बीमारी है जो आदमी से अक्सर 'काम' करवा देती है, सही गलत का मालूम नहीं पर काम जरूर हो जाता है |
अब हिमाचल के सबसे ज्यादा ढलान वाले पास पे जाना हो, वो भी अकेले , तो डर तो लगेगा ही, तो मैंने सोचा क़ि बरोट के honorary citizen , सन्नी से बात क़ी जाए | फोन किया तो पता चला क़ि महाशय क़ी IAS क़ी परीक्षा है शिमला में| पर अब मुझे कोई बलि का बकरा चाहिए था, और सन्नी से अच्छा बकरा कोई हो नहीं सकता था क्यूंकि ऐसी जगह जाने के लिए, वो एक नहीं हजार बार कट सकता है, एकदम ख़ुशी से, अपनी मर्जी से | सन्नी को मनाया गया, वो पहले ही मान चुका था, बस उसको भरोसा दिलाना था क़ी भैय्या तुम मान गए हो |
तो कार्यक्रम बन गया कि अगली सुबह ६ बजे सवारी निकल पड़ेगी ताकि हम दोपहर - दोपहर में जलोड़ी पास पहुँच जाएँ | शाम तक कार्यक्रम फिर बदल चुका था क्यूंकि सन्नी के अन्दर देशभक्ति जाग उठी थी और वो collector  बनने के ख्वाब देखते हुए ना जाने का इरादा कर चुका था |

खैर, जिद है तो जिद है, मैंने सोचा कि अब अकेले ही निकला जाए, सुबह उठते ही घोड़े पे सवार हुआ और निकल लिया मंडी-सुंदरनगर कि हसीन वादियों कि ओर | गुस्से और जिद में मेरी स्पीड कुछ ज्यादा ही तेज़ हो गयी थी ओर १०० किलोमीटर का सफ़र मैंने डेढ़ घंटे में पूरा कर लिया | वहां मुझे एक आशा कि किरण और  दिखी ओर मेरा एक दूसरा मित्र, मैंने उसकी बलि लेने का प्रोग्राम बनाया| इस तरह से मुझे एक दूसरा साथी मिल गया, जो मेरे साथ घूमने चले , लेकिन तब तक कहानी में एक ओर ट्विस्ट आ चुका था ओर सन्नी की देशभक्ति उड़ चुकी थी ओर अब वो 'into the wild ' बनना चाहता था , तो इस तरह से जहाँ मुझे अकेले जाना था, अब तीन सवारियां तैयार हो चुकी थी, दो घंटे बाद सन्नी महाशय सुंदरनगर पधार चुके थे, ओर हम लोग निकल पड़े हिमाचल के सबसे ढलानदार पास कि ओर|

पंजाब ओर हरयाणा के लोगों कि वजह से हिमाचल का टूरिस्म डिपार्टमेंट काफी पैसे बना रहा है, पर ये लोग सड़कों पे काफी ग़दर डाल के रखते हैं | जहाँ मन किया वहीँ गाडी रोकी, डिक्की खोली ओर 'क्यूँ पैसा पैसा करती है' गाना लगा के लगे नाचने | दिक्कत इससे ये होती है कि बाकी के लोगों को दिक्कत  हो जाती है, पर किसकी गलती है ये पता करने में सड़क पे जाम ओर भी भयंकर हो जाता है, इसलिए जो चल रहा है चलने दो | तीनो भाई आराम से औट कि सुरंग के पास पहुंचे ओर हमारा रास्ता मनाली जाने वालों से अलग हो गया | नेशनल हाइवे -२१ पे बाईक चलाने में जो आनंद है वो पानीपत के फ्लाई ओवर में भी नहीं है , पर हमारा रास्ता अलग हो चुका था | औट से बंजार जाने वाली सड़क एकदम सीधी तो नहीं है, पर ये सड़क  उम्मीद से काफी अच्छी थी | जैसे ही हम बंजार के नजदीक पहुंचे, हमें दिखाई दिए 'save tirthan valley ' के बोर्ड , अब वेल्ली  को सेव करना है तो वेल्ली  में तो जाना ही पड़ेगा, तो हम घुस गए valley के अन्दर, valley का आखिरी पॉइंट था बदाहग, शाम के चार बज रहे थे ओर जलोड़ी पास जाना अब ठीक नहीं था, तो हमने इरादा किया कि हम लोग ' हिमालयन नेशनल पार्क' में एक रात बिताएंगे ओर अगली सुबह वहां से जलोड़ी पास के लिए निकलेंगे, पर वक़्त कि मार आदमी को कहीं भी पड़ जाती है, हमें भी पड़ी | ४० किलोमीटर ऊपर नीचे घूमने के बाद, दो सरफिरे लोगों से भिड़ने के बाद, उनमे से एक को १०० रुपये देने के बाद हम लोग शाम को बंजार पहुंचे | इस बीच सन्नी एक बूढ़े आदमी को बचाने के चक्कर में ठुक चुका था, ओर उसकी पसलियाँ दर्द कर रही थी | मैं अपने दोस्त को जीवन का ज्ञान देने के चक्कर में रास्ते से बाईक समेत उतर गया | हालाँकि मैंने अपने दोस्त को चलने से पहले जीवन का एक ज्ञान ओर दिया था कि 'सवारी ना सिर्फ अपने सामान बल्कि अपनी जान की भी खुद ही जिम्मेदार है', इसलिए हम दोनों की जान बच गयी क्यूंकि जब बाईक गिरी तो उस पर कोई भी सवारी बैठी नहीं थी, हम दोनों हवा हो चुके थे |

 Save Tirthan Valley - Don't be an ass | Behave like a human being

 
बेस कैंप -साईं-रोपा  काम्प्लेक्स 

रास्ते में एक लड़के ने हमें मदद कि पेशकश की, वो हमें टेंट, स्लीपिंग बैग दिलवाएगा ऐसा उसका कहना था, आखिर में उसको सौ रुपये देके विदा करना पड़ा की भाई जान छोड़ दो हमारी , नहीं तो वो चाहता था की हम उसके साथ उसकी मासी के घर रुकें, वहां खूब मजा आएगा, ऐसा उसका कहना था, पर मजे के चक्कर में ७ बज चुके थे, रहने के लिए कोई जगह नहीं थी, बाईक में पेट्रोल नहीं था ओर आस पास ५०-५० किलोमीटर तक कोई पेट्रोल पम्प भी नहीं था | रात हुई, एक दो कौड़ी के रेस्ट हाउस में अच्छा सा रूम मिल गया | शराबियों को शराब कि जरुरत थी, तो शराब ढूंढी गई | नेशनल पार्क जाना कैंसल हो चुका था क्यूंकि वहां जाने के लिए दो दिन चाहिए, हमारे पास दो दिन नहीं थे |

अब तक मैं कई पहाड़ी इलाकों में घूम ओर घुस चुका हूँ, पर बंजार अलीबाबा कि कहानियों का गाँव लगता है, सब लोग शराबी लग रहे थे ओर सब लोग हमें देख रहे हैं, ऐसा लग रहा था | हालांकि सबको यही लगता है कि दूसरा आदमी उनकी तरफ ही देख रहा है, उनके बारे में सोच रहा है, जबकि ऐसा कभी होता नहीं है, सब अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं, पर बंजार सिटी में, सबके पास टाइम था, हमारी तरफ देखने का ओर हमारी तरफ घूरने का, हमने चुपचाप शराब उठाई ओर कमरे में खुद को बंद कर लिया| मेरा दोस्त कुछ जांबाज़ बन रहा था, तो उसको जिंदगी का एक ओर सच सुनाया गया कि भैय्या अनजान जगह में पोलिस पहले पैसे ले लेती है, फिर नंगा करके मारती है, उसने शराब ओर पोलिस कि मार को अपने दिमाग में वजन किया ओर शराब से हाथ मिला लिया |

शराब पीने के बाद आदमी रंगीन हो जाता है, फिलोसोफेर टाईप, सन्नी का खून ख़तम हो चुका है ओर सिर्फ शराब बची है अन्दर, तो उसको ज्यादा  फरक नहीं पड़ा, पर मेरा दूसरा दोस्त अब भगवान्  हो चुका था ओर उसने उपदेश शुरू कर दिए थे, थकान ज्यादा थी ओर भूख भी, इसलिए उपदेश जादा देर नहीं चले ओर हम सो गए | मौसम खराब था, ओर सुबह होते होते बारिश शुरू हो गयी, कुल्लू में अक्सर बादल फटा करते हैं, सुबह ४ बजे जब मेरी नींद खुली तो बहार प्रलय कि बारिश हो रही थी, मुझे आधी नींद में यही ख्याल आ रहे थे कि , 'बंजार में बादल फटा २०० लोगों कि मौत' | जैसे तैसे बादल गए, मौसम खुला ओर सुबह सात बजे हम जलोड़ी कि ओर रवाना हो लिए | जैसे ही हमने बंजार छोड़ा, रास्ते में छोटे छोटे, cottage टाईप गेस्ट हाउस दिखने लगे, ओर हम अपनी किस्मत को कोसने लगे कि रात को यहाँ रुके होते तो जीवन में नया सवेरा आता |

अब हमें मिलना था एक नए दोस्त से, जोकि बंजार वेल्ली  में MyHimachal के साथ जुड़ के देश-प्रदेश में चेंज  लाना चाहते हैं , पदम् जी, उम्र ३१ साल, लेकिन energy २५ साल के लौंडे से भी जयादा| उनसे राम -सलाम हुई, फिर उनको भी एक बाईक पे बिठाके जलोड़ी कि ओर ले जाया गया, तीन का काम वैसे भी ठीक नहीं होता, तो हम तीन से चार हो गए, पदम् जी भी ख़ुशी ख़ुशी हमारे साथ हो लिए| बंजार valley में लहसुन खूब दबाके उगता है ओर लोगों ने आने घरों में लहसुन कि गांठें बात के राखी होती हैं, सुखाने के लिए|



ऊपर कि ओर जाते हुए हाथ सुन्न हो चुके थे, दाढ़ी में धुंध जम चुकी थी और देखने के लिए दो आँखें कम पड़ रही थी | पर बाईक जलोड़ी पास कि चढ़ाई पे फ़िदा हो चुकी थी ओर सन्नाटे में एकदम ऐसा लग रहा था कि ये सड़क सिर्फ हमारे लिए ही बनी हो | जैसे ही जलोड़ी पास पहुंचे , जीवन रंगीन हो गया | पास से एक तरफ great हिमालयन पार्क कि चोटियाँ  दिखती  हैं, तो दूसरी  तरफ शिमला जिला  के दलाश  के सेब   के बगीचे  | अन्दर जंगले  में घुस जाओ  तो खुदा भी दिख  सकता है | पर हमने पदम् जी बात मानते  हुए रघुपुर  फोर्ट  जाने का मन बनाया | किले देखने में मुझे बड़ा  आनंद मिलता है, किले राजा  बनवाता  था अपने लिए, अपने साम्राज्य  के लिए, किले तो गए, राजा भी गए, पर जिन  मजदूरों  ने वो किले  बनाय , दूर दूर से पत्थर   ढो के, उनकी जिंदगी तबाह  हो गयी |

Bone Chilling 'Summers' - Numb Fingertips and Frozen Khopdi (खोपड़ी)


 
जीभी गाँव 



खैर, किले तक जाने के लिए दो घंटे कि चढ़ाई चढ़नी  थी, जिसको  चढ़ते  हुए सांस  बस ख़तम ही होती गयी | पहाड़ी लोगों से जब भी पूछो कि कितनी दूर और है तो जवाब मिलता है १५ मिनट , मेरी यही राय है कि १५ को दस से गुना कर लो, कम से कम उतनी देर तो लगेगी ही | लेटते गिरते पड़ते हम किले तक पहुंचे ओर किले को देखकर कोई ज्यादा ख़ुशी नहीं हुई | आधा किला सराय बन चुका था, concrete technology you see , और बाकी किले का सत्यानाश हो चुका था, शायद राजा गरीब था, इसीलिए  छोटी दीवारों से ही काम  चला  लिया करता था|

 
रघुपुर फोर्ट से नजारा 

 
रघुपुर फोर्ट - II, सामने हिमालयन पार्क की चोटियाँ दिख रही हैं 

वापिस लौटते वक़्त पदम् जी से उनके जीवन कि कहानी जानी, तो भाईसाहब के पिताजी गिओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया में काम करते थे, पूरा भारत देखा, तरह तरह के विद्यालयों में पढ़े, मतलब कि बचपन का पूरा मजा उठाया, पर वक़्त कि मार किसीको भी, कहीं भी पड़ सकती है, [शायद] उनको भी पड़ी, जमीनी फसाद हुए, घर वापिस आना पड़ा, पढाई लिखी छोड़ के, नहीं तो जो आदमी चंडीगढ़ पढता हो, वो वापिस क्यूँ आएगा पहाड़ों में, पर पदम् जी ने MyHimachal ज्वाइन किया, जीवन को नयी पटरी पे ले आये| अब उनका एक ही ख्वाब है जीवन में, उनके बच्चे ओर शेहेर के बच्चे सबको एक जैसी शिक्षा मिले, उनके बच्चे वैसी लडाइयों में ना पड़ें, जैसी लडाइयों में उनके पुरखे पड़े | अब जमीन साथ तो कोई लेके नहीं जाता, पर जमीन के चक्कर में जिंदगी ख़तम हो जाती है | उन्होंने हमें बताया कि कैसे वो यहाँ गाँव गाँव में जाके हेल्थ मेला चलते हैं, लोगों को बीमारियों के बारे में बताते हैं| उनका सपना है कि वो एक विद्यालय adopt करें ओर उसको एक आदर्श विद्यालय बनाएं ताकि ९ प्रतिशत कि अंधी दौड़ में अंधे होके भागते लोगों को पता चले कि अगर स्टुडेंट अच्छा होगा, तो सब अच्छा होगा, डरपोक स्टुडेंट के लिए ९०० प्रतिशत growth रेट भी कम पड़ जाएगा |
आदमी अपने लिए बहादुर बने बस, दुनिया तो चल ही रही है :)

 
नरेश, पदम् जी, तरुण |

जलोड़ी पास कि उतराई में साफ़-साफ़ लिख रखा था कि कृपया पहले गेअर में चलें क्यूंकि कई कई जगह पे ६० डिग्री का स्लोप है, पर जिस गाडी में तेल ना हो, ओर पेट्रोल पम्प ५० किलोमीटर दूर हो, उस गाडी वाले को मौत से नहीं डरना चाहिए, तो हमने जांबाजी (बेवकूफी) दिखाते हुए पूरे १३ किलोमीटर न्यूट्रल ही उतार दिए, जान बच गयी, नीचे पहुँच गए, दिल को काफी सुकून मिला |

और एक अचम्भा, Symbiosis का स्टुडेंट जीभी में, जीभी एक गाँव है ओर वहां MyHimachal का एक दफ्तर है , मास communication का स्टुडेंट सुमेध, वहां अपनी जिंदगी के बेहतरीन ६ हफ्ते बिता रहा है, जान कर ख़ुशी हुई ओर भाई साहब से मिलने कि इच्छा भी प्रबल हो गयी | 

ACDC को salute करने  वाली टी- शर्ट पहेन के कोई जीभी में घूमेगा, ऐसा अंदाजा नहीं था, but as Sumedh said, you have to start somewhere. 
  
Facts about Sumedh: Belongs to Maharashtra, cannot speak Hindi well, and making pahadi people understand his style of Hindi is a challenging job for sure.

He was surprised to know that people belonging to his age group (19-20) don't know anything about AIDS and other sexual transmitted diseases. They can't speak well in Hindi or English, they study in same class for years because they fail in English, 8th and 9th class English. Casteism is still dominant in this region of country and people are ready to chase away 'lower caste people' but happily take 'ghee and milk' from them. He stayed alone for six weeks in that village and when I asked about his work and stay in Himachal, he said I am perfectly happy here because I have done something worth doing with my life. 

Just imagine, you meet a guy from Jeebhi, who is 21 years old and does not know about AIDS, does not know about AIEEE, IIT, NIT, DU SRCC 100% Cut Off, let alone having a Facebook account and complaining about monotonous life, he is still busy telling his caste to others. 
And before you go and ask for water or help in the valley, make sure you know about you caste because if you don't, you will feel bad.


AC~DC- We Salute 'you'
 
Well, one of my friends, who owns/runs a web development company decided that he will do something for the education scenario. He is already designing new website for MyHimachal.  My best wishes with him.

अब रात हो रही थी, और जाना था बिजली महादेव, कहते हैं वहां हर साल बिजली पड़ती है, शिवलिंग टूटता है, हर साल नया बनता है, फिर बिजली पड़ती है, फिर टूटता है ओर साईकल चला जा रहा है | बचपन में मुझे किसीने कहा था कि बिजली महादेव में जाके चिलम पियो तो साक्षात् शिव के दर्शन होते हैं, खैर कुल्लू पहुँचते पहुँचते शाम हो गयी, कुल्लू से ३१ किलोमीटर दूर बिजली महादेव है, रास्ता एकदम टाप क्लास है, बाईक वालों के लिए जन्नत | शाम ६ बजे बिजली महादेव  पहुंचे, एक घंटे का ट्रेक और है, हालत ढीली हो गयी, पर जिद है तो जिद है |

चढ़ते गए, एक दुसरे को गाली देते हुए, ऊपर पहुंचे, ऊपर का नजारा = अद्भुत |
एक तरफ पारबती ओर दूसरी तरफ ब्यास, मधुर मिलन हो रहा था दोनों नदियों का ओर बिजली महादेव से नीचे देखकर छोटा मोटा शिवजी तो मैं भी खुद को फील कर ही रहा था | जल्दी  जल्दी वापिस चले, रात हो चुकी थी, ओर इरादा था कुल्लू से सीधा सुंदरनगर जाने का, पर आदमी का शरीर थक जाता है , traveler कि स्पिरिट थके ना थके | 

 
ब्यास और पारबती का संगम - विहंगम दृश्य

रास्ते में एक और ग़दर था, लोगों ने गाड़ियाँ बड़ी बड़ी ले रखी हैं, पर मैं शर्त लगा के  कह सकता हूँ  कि आधी जनता को ये नहीं मालूम कि dipper किस बला का नाम है | थोड़ी देर तो हम शरीफों कि तरह चलते हुए, पर जब हद हो गयी, तो मीटिंग हुई ओर सन्नी ने एक सुझाव दिया कि नीचे ब्यास में मरने से अच्छा है कि दायें हाथ को ही चला जाए, अगर भिड़ भी गए किसी गाडी से तो कम से कम घर वालों को लाश तो मिल ही जाएगी ब्यास में तो बस कपडे ही हाथ लगेंगे , तो अब मौत के परवाने उतर चुके थे सड़कों पर | हमने अमेरिकेन ट्राफिक सिस्टम फोल्लो करना शुरू कर दिया, सामने से आने वाले गाडी जब तक लाईट लो ना करे, हम सामने से नहीं हटेंगे, ओर जो लो बीम ना करे, वो पक्का मूर्ख होगा जिसको पता ही नहीं होगा कि लो बीम करते कैसे हैं, उसको माँ बेहेन कि गाली, साथ में एक दो पत्थर, तोहफे के रूप में | 

यकीन मानिए, रात में कुछ भी नहीं दिखता अगर बीम हाई हो तो, तो अगर आपके पास कोई स्विफ्ट, डिजायर, i10, i20, स्पार्क, ट्रक, बस या कोई भी गाडी हो, देख लें, सीख लें कि उसमें लो बीम कैसे होती है, आपको और  सामने से आने वाले को अच्छा लगेगा | 

सुंदरनगर  में ५ घंटे  की नींद और फिर अगली सुबह सवारी फिर चल पड़ी, एक अनजान जगह कि ओर|

Manual Lift - Desi Style
A wonderful article by Sumedh Natu about a wonderful school, read here

Tuesday, June 7, 2011

Unlearn | Uneducate | Brainwash | Mindlessness Again

This is going to be narrative of a conversation I had with a lady at one of the awesome places of Himachal [Barot] , it might not have any 'Moral Of The Story' type ending but for me, it surely was a wonderful story to think of and to write about.

आंटी ये जगह तो एकदम मस्त है, आपकी तो किस्मत  है जो यहाँ रहते हो, साथ गए दोस्त  ने कहा |
आंटी ने हँसते हुए कहा, बच्चे तुम थक गए हो, अपना कमरा देख लो | 
मैंने न चाहते हुए भी सोच ही लिया की आंटी इतनी भी किस्मत वाली नहीं मानती अपने आप को, पर मेरा क्या था, मुझे मतलब था मछली से जो मेरे लिए अपनी जान दे चुकी थी और अब मैं उसके  लिए तड़प रहा था |  

बरोट प्रसिद्ध है अपनी ट्राउट मछलियों के लिए जो वहीँ पैदा होती हैं और आधे  से ज्यादा वहीँ अपनी जान दे देती हैं, ताकि इंसान का पेट भरा रहे, अब वो जान देती हैं या आदमी  ले लेता है ये मुझे नहीं पता | अगर 'सिर्फ भगवान् ही ' जान ले/दे सकता होता, तो आदमी ने मछली को नहीं मारा, और अगर आदमी मछली को [या किसी और जीव को] मार सकता है, तो इंसान को कोई नहीं मार सकता सिवाय भगवान् के, ऐसा सोचना  निहायत ही बेवकूफी होगी | किसी न किसी के लिए आदमी भी मछली-समान ही होगा |

अपना सामन रखने के बाद हम ४-६ लोग निकल पड़े बरोट में घूमने के लिए, वहीँ पास में एक शादी हो रही थी, औरतें और मर्द एक साथ नाच रहे थे, जैसा की हर एक शादी में होता है, पर उनके नाचने में, और जो नाच मैंने आज तक देखे हैं, उनमें थोडा फरक था, फरक क्या था ये मुझे मालूम नहीं पड़ा, पर कुछ फरक तो था उनकी ख़ुशी में | छोटी सी शादी थी, और काफी लोगों ने शराब पि रखी थी, 'औरतों ने भी और मर्दों ने भी ' | 

अपनी इंजीनियरिंग ख़त्म करने के बाद मैंने एक महीना रामपुर (जिला शिमला) के एक छोटे से गाँव में एक महीना काम किया था, किसी Hydro -प्रोजेक्ट में, पहली बार मैंने औरत और मर्द दोनों को एक साथ बैठ के शराब पीते देखा, शराब देसी थी, शायद चुल्ली की शराब थी, मुझे काफी अजीब लगा, एक तो वो खुले में बैठ कर पि रहे थे और दूसरा मैंने पहली बार औरतों को हुडदंग मचाते देखा, शराब पीने के बाद | शाम को पता चला की यहाँ सब लोग मिल के ख़ुशी मानते हैं और जब बात शराब की हो, तो पहाड़ी लोग औरत-मर्द भूलकर पीते हैं, बात अच्छी लगी, नहीं तो जिन जगहों पे मै रहा हूँ ,  वहां तो शराब पी कर 'आदमी' हर उस औरत की बुराई करता है जो अपना काम अपने तरीके से करना चाहती हो |

खैर, शादी से वापिस आ कर , मछली भोग किया गया और फिर शुरू हुई असली कहानी, आंटी की 'किस्मत वाली हंसी' अभी भी मेरे दिमाग में थी और मुझे मालूम था की इस बार की कहानी the story, आंटी के नाम होगी|

आप कब से रह रहे हो यहाँ?
1978 में मेरी शादी हुई, तब से यहीं हूँ |
आपने तो इस जगह को बदलते देखा होगा, एक एक घर बनते हुए |
हाँ बनते भी देखे और बिगड़ते भी देखे, ये जगह बिलकुल जंगल थी जब मैं यहाँ आई थी, एकदम सुनसान, ४ घर इस तरफ और ४ नदी के उस तरफ, मैं कांगड़ा से आई थी यहाँ पर और यहाँ आ कर पहले ५ साल मैं सिर्फ रोती रही की कहाँ शादी कर ली | आज जो है वो तो बस एक सपना ही है, नहीं तो हमारे लिए तो जंगल, बर्फ और जान बचाना, यही जिंदगी का सच था कई सालों तक | आज लोग आते हैं, खुश होते हैं, जैसे आप हो रहे हो, कहते हैं मैं किस्मत वाली हूँ की ऐसी जगह रहती हूँ, पर सबकी अपनी अपनी है, किस्मत भी और जिंदगी भी |

मैं सोच रहा था की आंटी सिर्फ दुकान ही नहीं चलती, दिमाग भी चलती है |

तभी सामने से दो औरतें नाचती हुई आ रही थीं, पहाड़ी औरतें सुन्दर होती हैं, औरतें तो सब ही सुन्दर होती हैं वैसे पर पहाड़ी रूप रंग कुछ ज्यादा ही चमकता है , रात के आठ बज रहे थे और वो दोनों नशे में धुत थी शायद, और खुश भी थी |
मैंने आंटी से पूछा, ये क्या हुआ है इनको?
हुआ क्या है, सारा दिन काम करने के बाद कोई भी थक जाएगा, ये भी थक गयी और दिमाग शांत करने के लिए या तो योग कर लो या शराब पी लो, इन्होने शराब उठा ली, आसान रहती है शराब, नींद भी अच्छी आती है |

आपको कैसे पता?आप भी पीती हो?
हाँ तो, कौन नहीं पीता? अब जो काम करेगा सारा दिन , थक जाएगा उसको तो शाम को कुछ न कुछ चाहिए, हम पहाड़ी लोग शराब से काम चला लेते हैं|
फिर आंटी ने सामने देखा, नदी के किनारे पर मेरे साथ ए ४ लोग दारु की बोतल खोल के मजा ले रहे थे, आंटी ने मेरी तरफ देखा, हंसी और पुछा,' तो, तुम नहीं पीते?'
मैं भी हंसा और कह दिया, " नहीं आज तक तो पी नहीं, आगे का पता नहीं"
मैं सिर्फ बीयर पीती हूँ, ठण्ड पड़ जाती है दिमाग में, मजा भी आता है | 

And her smile explained the joy of drinking beer, I have heard so many people talking about the joy of drinking beer but her expressions made it pretty clear and simple, beer is awesome was the verdict.

ये दोनों घर कैसे जाएंगी? इतनी शराब पी रखी है इन्होने, और रात भी हो गयी है, मेरे दिमाग में अभी भी औरत-मर्द और rape का कांसेप्ट चला हुआ था और सर्व ज्ञाता आंटी ने एक बार फिर मेरे मन की बात भांप ली |

यहाँ ऐसा नहीं होता, लोग अपने काम से काम रखते हैं, जैसे जैसे नीचे की हवा यहाँ आ रही है, थोडा हिसाब किताब डगमगा रहा है नहीं तो पहाड़ी औरत और पहाड़ी मर्द, सब बराबर हैं, शराब पी के भी और शराब पिए बिना भी | मैं सिर्फ दुकान ही नहीं चलती गाँव भी चलाती हूँ, यहाँ औरतें मर्दों से ज्यादा काम करती हैं, ज्यादा शराब भी पीती हैं और घर भी चलाती हैं |

मेरा दिमाग अभी भी उन महिलाओं पर टिका हुआ था की ये घर कैसे जाएगी? पर आंटी ने मुझे समझा दिया की यहाँ ये नयी चीज़ नहीं है, चीज़ नयी हो तो बवाल उठता है, यहाँ ऐसा कई कई सालों से होता आ रहा है और किसीको कोई दिक्कत नहीं होती | नीचे लोग ज्यादा पढ़ लिख गए हैं, लेकिन दिमाग उल्टा हो गया है, शराब को औरत-मर्द में divide कर दिया है , आदमी पिए तो ठीक, औरत पिए तो नीच हरकत |

आपके पति को मालूम है की आप पीती हो, और सवाल पूछने के बाद मुझे कुछ अजीब लगा |
आंटी एक बार फिर हंसी, इसमें पता होने की क्या बात है? हम दोनों साथ पीते हैं | और मेरी उनसे  शादी हुई है कोई 'वेल्डिंग' तो हुई नहीं है की मैं ख़तम हो गयी | शादी के लिए जरुरत होती है दो लोगों की, पर दुनिया ये समझ गयी की दो लोग सिर्फ 'शादी तक' ही  चाहिए, दोनों लोग 'शादी के बाद भी' रहने चाहिए, एकदम अपनी खुद की सोच वाले, तभी मजा है |

And fuck yes, marriage is not welding, individuals must remain. Individuals are required before marriage, why should they die post marriage. Individuals must remain, always. आंटी was turning out to be a 'ज्ञान का भंडार' |

अब एक लड़का था, जब तक यहाँ पढता था तब तक काम करता था, सबसे बात करता था, बाहर से पढ़ के आया कहीं से, उसने घर का काम करना बंद कर दिया | रसोईघर में घुसना बंद कर दिया, कहता रसोई का काम तो सिर्फ औरतों के लिए है | अरे कौन सा ऐसा स्कूल है जहाँ ऐसा सिखा देते हैं, खाना सब खाएं, काम करे औरत? खाना अगर खाना है तो बनाना भी पड़ेगा , ये तो common sense है, इसमें लड़का लड़की का क्या है? अगर ऐसा सिखा रहे हैं बड़े बड़े स्कूल में, तो मैं कहती हूँ हमें पढने की जरुरत नहीं है, भूल जाओ सब कुछ जो जो पढ़ा है, ऐसी पढाई educate नहीं कर रही है, uneducation की जरुरत है फिर तो | 

And this is what I was reading before coming to Barot, "Unlearning is the beginning of wisdom. All your priests and popes go on telling you, "Learning brings wisdom." But a man like Bodhidharma or Socrates or Gautam Buddha will not agree with these people, they will agree with Kahlil Gibran: the function of the master is to help you unlearn everything so that you become again an innocent child." Osho said this, Aunty made it clear. 

मैं चलती हूँ अब, शादी में जाना है, डांस करना है और बीयर पीनी है , बीयर पीने का बड़ा मन है मेरा आज | और आंटी ने दूकान अपनी लड़की को हैण्ड-ओवर की और थोड़ी देर में गाड़ी में बैठ कर, गाड़ी 'खुद चला कर' , मुझे बाय कहती हुई चली गयी | 

Whatever she said made perfect sense to me. I am not sure about uneducation going by what we see happening in our 9% P.A Growth rate society, we can consider this option of unlearning too, probably it can help some of us. 

And this is not about alcohol only, integrate it and we will see that even today we live in a biased and weird society. Read this if you do not agree.