Tuesday, September 16, 2008

इक खुदा था



इक खुदा था जो करता था,

मुरादें पूरी मेरी

जाने क्यूँ मिट गया वो,

जाने क्यूँ गुम गया वो



इक सनम था जो चाहता था,

दिल~ओ~जान से मुझको

जाने क्यूँ बदल गया वो,

जाने क्यूँ पलट गया वो



इक था मैं जो बुनता था,

हसीं ख्वाब कभी

न रहा अब मैं हाज़िर,

न पूरा हुआ मेरा ख्वाब वो



बदल गया है अब खुदा भी,

जाने कब से

न सुनता है बातें मेरी,

न करता है गुफ्तगू वो



क्यूँ होता है ऐसा अक्सर,

इस जहां में

न बन पाता है इंसान कोई,

न हो पाता है कोई, खुदा वो


©copyright protected 1985-............


5 comments:

Anonymous said...

बहुत ख़ुशी हुई हिंदी में एक कविता देख कर.....और भी लिखा कीजिये.. हिंदी की कविता की मिठास ही अलग होती है... वो रस सिर्फ हिंदी में ही है...
'लोग बदल जाते है ज़माने के साथ, हम भी बदल गए है नजाकत के साथ.अब हिंदी लिखनी हो रही है मुश्किल, अक्षर बदल गए है देशो के साथ'

Saurabh Baghel said...

mast hai yaar.......
its gud to see that ppl still are continued with their hobbies.....

yahaan job mein ake to meri hobbies and sports sab chooth gaya hai !!

but i'll also render my duties as a writer soon!

Rahul Gupta said...

sahi...
... sab kuch alag hai sab kuch naya hai...
kuch to hua hai kuch ho gaya hai..
:)
few questions don't come with absolute answers...
there exists a unique good looking answer for each situation...
andand the that moment of life moves on assuming this as the perfect solution...
which somehow could not be achieved for the years... [:)]..
cycle moves on...
life is so good with so many answers... so many ways...
so amazing that moment in any directions will lead us through the journey of "life".
:)

Vishesh said...

can you translate it? I don't understand hindi...

Anonymous said...

बेहतरीन रचना
दिल को छू गई