Sunday, September 25, 2011

(भोंदू) गोपाल

कहानी समझ आई? नहीं आएगी तेरी समझ में, तू जा, घर जा, खुश रह तेरे बस के होगी तो बुला लेंगे, और चौबारे पे बैठे सब लोग हंसने लग पड़े|

वो समझ नहीं पाया की क्यूँ हंस रहे थे, वो भी हँसता हँसता घर चला गया अपने, नाम गोपाल था उसका, मोहल्ले वालों ने भोंदू रख दिया था, अक्ल जरा कम थी उसमें, ऐसा मोहल्ले वाले कहते थे और वक़्त के साथ उसके माँ बाप ने भी यही मानना शुरू कर दिया था | भोंदू गोपाल को ये बात समझ नहीं आती थी की अक्ल तोलने का पैमाना क्या है|

चौबारे पे बात हो रही थी ग्लोबल वार्मिंग की, कैसे लोग गाड़ियाँ चलानी बन्द कर दें और कैसे दुनिया का भला हो, कैसे आने वाली नसल सुखी रहे|  भोंदू गोपाल अपनी ९ से ५ की क्लर्क की नौकरी करके वापिस आ रहा था, उसने भी सुन लिया की गाडी चलाना, हर एक आदमी का गाड़ी चलाना   दुनिया के भले के लिए ठीक नहीं है, इससे कुछ गड़बड़ हो जाएगी हवा में, पानी में| बड़े लोग अपने शौक के लिए चार पांच गाड़ियाँ रखते हें और उससे देश दुनिया का बेडा गरक हो जाता है, इन्सान को दूसरों के लिए भी सोचना चाहिए| दुनिया का बेडा गरक हो जाएगा ऐसे तो |

 उसे चिंता होने लगी, शादी थी उसकी अगले महीने और उसने हाल ही में टाटा नेनो के लिए लोन अप्प्लाई किया था, पर अब उसे चिंता होने लगी की उसके गाड़ी चलाने से देश और दुनिया का नुकसान हो जाएगा | उसने जानने की कोशिश की, भीड़ में बैठे अपने स्कूल के प्रिन्सिपल जीजाजी से पुछा, उन सबने उसकी तरफ देखा और ठहाके मरने शुरू कर दिए, पर भोंदू तो भोंदू ठहरा, उसने बात दिल पे ले ली|

पूरी रात अकेले सोचने के बाद, अपने प्रिन्सिपल जीजाजी  के ज्ञान की इज्जत रखते हुए गाड़ी खरीदने का इरादा त्याग दिया, उसे भी दुनिया की चिंता है, ये सोच के वो सो गया, सुख-चैन की नींद, आखिरकार दुनिया की  आने वाली नस्लों को बचा जो लिया था उसने|

अगले दिन सुबह प्रिंसिपल जीजाजी शादी की तैयारियों का जायजा लेने के लिए आये , भोंदू भी आ गया बताने के लिए की क्या कैसा चल रहा है| पर प्रिंसिपल अक्सर किसीकी बात नहीं सुनते, तो उन्होंने भी नहीं सुनी, भोंदू तो मूरख ठहरा, मूरख की बात वैसे भी कोई नहीं सुनता|

जीजाजी शेखी बघार रहे थे, की कल गाड़ी ले रहे हैं नयी, अब उनके घर में भी दो गाड़ियाँ हो जायेंगी| एक से स्कूल जाया करेंगे और एक से घूमने-फिरने|

भोंदू परेशान हो गया, की कल तो कुछ और कह रहे थे जीजाजी, और खुद ही दूसरी गाड़ी की बात|  पर जीजाजी दुनिया तो ख़तम होने वाली है ना, ग्लोबल वार्मिंग से, आप गाड़ी ले लोगे तो मेरी शादी से पहले ही ना ख़तम हो जाए |

अरे इतनी जल्दी नहीं ख़तम होने की ये दुनिया, तू घबरा मत| तेरी शादी में मेरी नयी गाड़ी में चलेंगे बरात लेके| और हाँ तू भी अपनी गाड़ी के लोन के कागज़ साइन करवा लियो मुझसे कल दफ्तर में आके, जीजाजी ने फरमान जारी किया|

पर मैं अब गाड़ी नहीं ले रहा हूँ, मैंने बैंक वालों  को मना  कर दिया है लोन के लिए| आप ही ने तो कहा था की दुनिया का बेडा गरक हो जाएगा ऐसे तो |

अबे बिना गाड़ी के ससुराल जाएगा तो हमारी क्या इज्जत रह जाएगी? बस से लेके जाएगा नयी बहु को? आदमियों की तरह अक्ल लगा लिया करो कभी | कुछ तो सोच लिया करो कभी? कुछ खानदान की इज्जत का तो सोच लिया करो| दिमाग चलता है तुम्हारा या नहीं? लोग क्या कहेंगे? तुम्हारे होते खानदान की इज्जत का बेडा गरक होते देर नहीं लगेगी| अबे यार, जहाँ अक्ल लगनी हो वहां लगाया करो, कुछ बातें सिर्फ कहने की होती हैं, पर तुम नहीं समझोगे, "अक्ल" नहीं है तुम्हारे पास|

भोंदू सोच विचार में पड़ गया की दुनिया को बचाए या खानदान की इज्जत?

Wednesday, September 21, 2011

The Traffic Barrier


There is a barrier ahead and I see cops, for god sake let me drive, you are drunk, said the beautiful lady.

It was a luxurious sedan, metallic black in color and the speakers could easily damage your diaphragm unless you were too drunk to notice the music noise. The young lady had met that guy outside the pub and just a glance at his car ensured that she loved him. 

At the mere sight of policemen she was scared to death. Probably she did not know that luxurious Sedans are far more powerful than an ordinary policeman. The car stopped at the barrier without anyone asking to stop it. The window rolled down and the guy popped his head out towards the police officer standing near the barrier, supposedly he was the officer-in charge. 

Hey, why this barrier? What’s going on? You always trouble common people and terrorists blast you in your face always, he shouted at the police officer and smiled at his girlfriend.

This is for your safety sir. We are checking if there is any case of drunk driving, reported back the police officer.

So, have you found any case as yet or not?

Not yet sir, said the police officer.

Try to find one, it is important, and he slipped a thousand rupee in his hand. The girl was too happy to see his newly made boyfriend’s influence. The guy was too drunk to notice her happiness; he was busy staring at her cleavage. He knew he had scored a touchdown. 

The police officer kept looking at the one thousand rupee note in his hand. Mahatma Gandhi’s image was shining under the newly installed halogen lamp. Tail lights of the sedan were shimmering at some distance and a dog was barking probably because it was parked at his sleeping spot.

The officer completed his round up and as soon as he entered inside his police station half an hour later, he saw two bodies wrapped in white, soaked in blood. The ambulance guy was getting late and he wanted the officer to have a look at the bodies and sign documents because he had to go to another location, someone else too was found dead on the road. 

The officer asked his hawaldar to uncover their bodies and the uncovered faces did not surprise him much. He had seen them half an hour ago sitting in a luxurious Sedan. He forgot the brand of the car though but image of Mahatma Gandhi’s shining face was still alive in his head.

He signed documents, lighted a cigarette and asked his hawaldars to settle those bodies.

One of his hawaldar’s voice could be heard in the background, “A truck hit them. The truck driver was too drunk to run away from the spot. He sat there waited for the police to arrive. Poor guys died for no mistake of theirs.”

We need to tighten the screw on these drunkards. Loss of life is the greatest loss, said an elderly hawaldar.

The police officer was staring at the Satyamev Jayate emblem, strangely he was facing the wall and the emblem stared him in his face.

Monday, September 12, 2011

One Day in the Life of a Navodya Teacher

 पहला भाग: One Day in The Life of a Navodya Student

सुबह ६ बजे का अलार्म बजता है और वो एकदम से अधपकी नींद में उठ जाती है|
मुझे लगा की जैसे कोई बम फटा, मैं ४ बजे सोया था रात को, दो घंटे बाद अलार्म बजेगा तो यही लगेगा की बम फट गया|
वो रात को शायद १२ बजे सोयी थी, एनीमल फार्म पढ़ के, एक ही दिन में ख़तम करके|
जब थोड़ी देर हो गयी तो मुझे उठाया गया, की भाई उठ जा, ८ बज गए हें, मैं स्कूल जा रही हूँ, चाय पि लो, खाना फ्रिज में रख दिया है|
मैं दस बजे उठा, खाना खाया, फिर से सो गया|
दोपहर में उसने आके खाना बनाया, मैंने खाया, बर्तन साफ़ किये और फिर सो गया|
वो शाम को पढ़ा के आई, खाना बनाया, फिर १२ बजे, फिर ६ बजे |

ये कहानी है एक नवोदय स्कूल के टीचर की| जो एक महिला है, जिसको घर भी चलाना है, बच्चों को भी पढाना है , खाना भी बनाना है, अपने तीन साल के बच्चे को भी हेंडल करना है, सास का भी ख्याल रखना है और साल के अंत में रिजल्ट भी अच्छा देना है, सब फ्रंट्स पे|

रिजल्ट से याद आया, नवोदय में सीनियर टीचर को हाउस मास्टर बनना पड़ता है, यानी की हॉस्टल में जाओ, खाना चखो, देखो अच्छा बना है या नहीं, बच्चों की हाजिरी लो, देखो सबने खाया या नहीं, जिसने नहीं खाया तो पूछो की क्यूँ नहीं खाया, बीमार है तो दवाई दो|  इस सबके बाद भी अगर रेग्गिंग होती है तो कमेटी को बताओ की भैया रेग्गिंग  क्यूँ हुई, उसने उसको क्यूँ पीटा| कई बार नौकरी भी चली जाती है |

इस सबके बीच वो नहीं भूलती की लेक्चर तैयार करना है|
मैं पूछता हूँ, लेक्चर की जरुरत क्या है, कितने साल से पढ़ा रही हो|
वो कहती है,  उसे सब आता है क्यूंकि उसे १५ साल हो गए हैं पढ़ते हुए, पर बच्चा, हर एक बच्चा पहली बार +१ , +२ में आया है, उसको उसीके लेवल पे जाके समझाना पड़ेगा|

और ये काम बड़ा मुश्किल है, अपने से कम समझ वाले के लेवल पे जाना, जब आप एक्सपर्ट हो, बड़ा मुश्किल काम है, और अगर ये काम हर रोज, हर दिन करना हो, अपनी expertise मेंटेन करते  हुए, तो सही में काम मेहनत का है |

स्कूल हमारी इंसानियत के, हमारी सभ्यता के, हमारी जिंदगी के सबसे महत्वपूरण पहलू हैं, मैं विद्यालयों  को माँ  बाप से भी ऊपर मानता हूँ, जो अच्छे स्कूल में, एक अच्छे टीचर से पढ़ गया, वो आदमी राजा  बन जाता है| शिक्षा का अर्थ है निडर बनाना , आत्म विश्वास जगाना |

ओशो कहता है की , सा विद्या या  विमुक्तये  यानी की शिक्षा वो है जो इन्सान को लिबेरेट कर दे, मुक्त कर दे, गगन में उड़ने की ताकत दे दे| पर हमारी विद्या, मेरी और आपकी, वो हमें निडर बना पायी है? कोई इंजिनियर बन गया, कोई डाक्टर बन गया, कोई मेनेजर बन गया, पर डर? पर क्या डर चला गया दिल से? किसी और से पीछे छूट जाने का डर? अगर नहीं तो विद्या बेकार हो गयी| और हर साल कितने हजार लोग इंजिनियर डॉक्टर बनते हैं, इतनी विद्या एक साथ बेकार हो जाना, गंभीर बात है |

टीचर होना , एक अच्छा टीचर होना बड़ा मुश्किल काम है, क्यूंकि कई बार बीमारी [पढ़िए]  आ जाती है, शरीर साथ नहीं देता, पर फिर भी, इस सबके बावजूद एक अच्छा टीचर बने रहना बड़ा मुश्किल काम है |

और वो, वो इस काम को निभा रही है बखूबी, कितने सालों से|

 और अब मैं जब उस बच्चे की कहानी याद करता हूँ, जिसको नवोदय में अच्छा खाना मिलता है, रहने को जगह मिलती है, और वो एक इंजिनियर बनना चाहता है , तो मुझे लगता है की नहीं, अभी सब ख़तम नहीं हुआ | [पढ़िए भाग एक]

इसी बीच फिर से छह बज जाते हैं, अलार्म बजता है और वो निकल जाती है, एक ऐसे मिशन पे, जिसको ना परम वीर चक्र मिलेगा, ना २१ तोप की सलामी, बस [शायद] कोई बच्चा मिलेगा, १५-२०-२५ साल बाद, जो कहेगा की मैडम, आप जैसा टीचर कहीं नहीं मिला | 

P.S.: This is story of my sister. I have tried very very hard not to sound biased. She is indeed a very good teacher. The best I could ever dream of.


Wednesday, September 7, 2011

यहाँ लोग बहुत हैं, वहां लोग ही नहीं - जाएँ तो जाएँ कहाँ

और अभी कितना चलेगा जनाब, कितनी दूर है मंदिर? हाँफते हुए मैंने बकरियां चराने वाले से पूछा |
 बस साहब पंद्रह मिनट और लगेंगे बस |
पानी मिलेगा आपके पास?
वहां नल है साहब, उससे अपनी बोतल भर लीजिये |
 पानी साफ़ तो रहेगा ना?
अरे साहब, यहाँ कैसे पानी गंदा होगा, जब गंदा करने के लिए इंसान ही नहीं है तो गंदा कैसे होगा?

 मैने पानी की बोतल भारी और अपने दिमाग़ में १५ मिनिट को २० मिनिट मान के निकल पड़ा | २० मिनिट के ४५ मिनिट हो गये, पर मंदिर नहीं आया, बोतल का पानी भी ख़तम हो चुका था, प्यास बहुत लगी थी और मैं अपने आप को कोस रहा था की क्यूँ नेतागिरी के चक्कर में पड़कर बिसलेरी नहीं खरीदी? ये इंसानी फ़ितरत है की जैसे ही मुसीबत आती है या काम पूरा हो जाता है, आदमी वापिस तुरंत से अपने कॉम्फर्ट ज़ोन में घुस जाता है | मेरे अंदर का पर्यारणविद भी जान हार गया तीन घंटे की चढ़ाई चढ़ते हुए| मुझे भी लगने लगा की एक बोतल खरीद ली होती पानी की और तो काम आ जाती|

शुरू में जब लोगों से पूछा तो उन्होने कहा की बस दो घंटे जाने  में और डेढ़ घंटा आने में, पर यहाँ दो से तीन घंटे हो गये पर ना तो मंदिर दिखा और ना ही झील| आस पास बात करने को कोई इंसान भी नहीं दिखाई पड़ता था, बात की जाए तो किससे की  जाए | प्यास से बहाल होके मैं भेड़ बकरियों के झुंड के पास जाके निढाल होके लेट गया| थोड़ी देर में जब शरीर में फिर से जान आ गयी, तो उठा और चलने लगा  फिर से मंज़िल की ओर, १५ मिनिट जब तक ख़तम नहीं हो जाते, मैं भी चलता जाऊँगा | जैसे ही मैं उठा, पीछे से एक आवाज़ आई, बैठ जाओ थोड़ी देर और बेटा, अभी तो दूर है काफी| वैसे भी इंसानी सांगत कम ही मिलती है इधर , थोड़ी देर बैठ के बात कर लो|

उसके दूर कहने की देर थी और मैं गुस्से से भर उठा, की एक तो मनहूस खबर सुना दी और अब बैठने को कहा जा रहा है, गप्प लड़ायेंगे इधर जंगल में? पर इंसानी संगत की जो बात उसने कही तो मेरा दिल भर आया क्यूंकि  मुझे तीन घंटे में किसी बन्दे के साथ ना होने से इतनी उदासीनता और चिडचिडाहट सी हो रही थी , तो वो तो पता नहीं कब से अकेला वहीँ था|

मैंने पुछा, बाबा क्या करते हो? और इंसानी संगत का मतलब?
अरे कुछ नहीं, जमीन है हमारी यहाँ पर, 28 बीघा |
२८  बीघा सुन कर मुझे कुछ समझ नहीं आया, २८  बीघा में तो वो पूरे पहाड़ के मालिक बन जायेंगे, और इतनी जमीन उनकी कैसे हो गयी?

आपने खरीदी या आपकी ही है शुरू से, और आप देखभाल कैसे करते हो इसकी?
बस अभी अभी खरीदी है, पचास हजार एक बीघा का, यानी की 14 लाख की जमीन| १४ लाख की जमीन और वो भी उन पहाड़ों में जहाँ कोई आता जाता नहीं, सुन कर अजीब लगा और वैसे भी मेरी थकान बढती जा रही थी , तो मैंने उसकी जमीनी कार्यवाही में ज्यादा इंटेरेस्ट शो करते हुए वहीँ बैठने के निर्णय ले लिया|

इतनी  जमीन का आप करोगे क्या? २८ बीघा में तो एक साथ खेती भी नहीं कर सकते |अरे बेटे, सब दुनिया के फेर हें, मैं तो बूढा हो गया हूँ, बच्चों के लिए ली है, वो यहाँ रहना नहीं चाहते, पर जमीन बड़ी प्यारी  है उन्हें| जमीन के साथ वैसे भी आज तक कोई क्या कर पाया है, सबकी यहीं रह गयी, जमीन भी और जायदाद भी|

रहना चाहते नहीं, जमीन प्यारी कैसे हुई फिर? और यहाँ रहेंगे कैसे?
 अरे लोग रहते हैं यहाँ, इक्का दुक्का ही सही, पर रहते हें, कुछ की मजबूरी है, कुछ को कहीं और जाने का मन नहीं करता, पर मेरे बच्चे यहाँ नहीं रहना चाहते|

मैंने सोचा की मैं किसी के लिए १४ लाख का गिफ्ट लूँ और जिसके लिए लूँ, उसे ही पसंद ना आये, तो या तो मैं पागल हूँ या फिर बहुत अमीर|

जब आप के बच्चे रहेंगे ही नहीं यहाँ, तो ये जगह किसके काम आएगी?
काम तो ये किसी के भी नहीं आएगी, चाहे कोई रहे या ना रहे| बस ये एक दौड़ है, अंधी दौड़ की जमीन खरीद लो, कभी ना कभी तो बिक जाएगी, जब दाम बढ़ेंगे |

पर वो यहाँ क्यूँ नहीं रहना चाहते?

बस बेटा वैसे ही, जैसे तुम और तुम जैसे लोग शेहेर में नहीं रहना चाहते| हम सब भाग ही तो रहे हैं, तुम वहां से यहाँ , और हम यहाँ से वहां|  बीते साल में एक लड़की आई थी, उसे बहुत सारे लोगों से प्रॉब्लम थी, कहती थी की सब जगह लोग ही लोग हें, भागते दौड़ते, गिरते पड़ते, लोग ही लोग, मैं निकल आई, मैं और नहीं भाग सकती थी, नौकरी छोड़ के भाग आई इस तरफ| यहाँ मेरे लड़के हें, उन्हें लोगों के ना होने से दिक्कत है, पैसा बहुत था, पर देखने वाला कोई ना था, पैसे का मजा पैसे में नहीं है, पैसे का मजा पैसे के दिखावे में है, बस उनको  वो मजा लेना था, उन्होंने शहर में बसेरा कर लिया| अब जब दिखावे का पैसा याद आता है, तो उनको इस जमीन की याद आती है| कहीं लोग लोगों के ना होने से भाग रहे हें, कहीं लोगों के होने से| जो गाँव में है, उसको शहर जाना है, जो शहर में है, उसको गाँव में आना है, कुछ को घूमने के लिए और कुछ को बसने के लिए|

और ऐसा क्यूँ हो रहा है? ऐसा तो हमेशा से ही होता है ना?
हाँ होता तो हमेशा से ही है, बस आज कल जरा दौड़ अंधी हो गयी है, जाना सबको है पर क्यूँ जाना है ये नहीं पता|

आप क्यूँ नहीं गए अपने बच्चों के साथ?
मैं बूढा हो गया हूँ, और नयी जगह जाके नए सलीके सीखने से अच्छा है की यहीं रहूँ पहाड़ों में, आराम से पुराना आदमी हूँ, पुराने तरीके से ही जी लूँगा| और रही जमीन की बात तो इससे मुझे प्यार सा हो गया है, जब कोई तुम जैसा भूला बिसरा आ जाता है तो लगता है की कोई तो चाहिए इस जमीन की रखवाली के लिए नहीं तो ये जगह भी जंगल बन जाएगी, कंक्रीट का जंगल| मैं तो मैं तो कबसे ये जमीन खरीदना चाहता था, बस डरता था की बच्चे कहेंगे बूढा पागल हो गया है, 14 लाख में पहाड़ खरीदेगा, पर उनको जमीन के पैसे से मोह था, मुझे पहाड़ों से| वो मजा आज से दस साल बाद ढूंढ रहे हैं, मैंने आज में ही ढूंढ लिया |

पर इंसानी संगत बहुत जरुरी है, बिना उसके जिंदगी का कोई मतलब नहीं है, कोई सुनने वाला, कोई देखने वाला, कोई बोलने वाला साथ ना हो तो इन्सान इन्सान नहीं रहता, शायद इसीलिए शादियाँ होती हैं, की कोई हमेशा साथ रहने वाला रहे| बस यहीं अंधी दौड़ में हम मात खा गए, साथ चलना भूल कर आगे भागना सीख लिया, सबको सबसे आगे जाना है, अरे सबसे आगे जाके किसीको बताने का मन करेगा तो किसको ढूँढोगे? बस इसीलिए मैं इंसानी संगत ढूँढता हूँ, की कोई मिल जाए, जिससे बात हो जाए, दिल हल्का हो जाए|

एक गडरिया मुझे इतनी बातें समझा गया, जितना मैंने सोचा नहीं था| बस मुझे एक बात नहीं समझ आई, जब सब अच्छे के लिए ही होता है, तो हम इतना क्यूँ सोचते हैं? होने दो जो हो रहा है, होना तो  अच्छा ही है|
या शायद सब अच्छे के  लिए ही होता है, यही सबसे बड़ा झूठ है|

खैर उससे विदा लेकर मैं चलने लगा तो एक और घुमक्कड़ मुझे मिला, थका हारा, बिन पानी के|
कितनी दूर है अभी मंदिर और?
बस पंद्रह मिनट और हैं दोस्त, मैंने कहा और हम साथ चल दिए|


फोटो क्रेडिट : जय पाल

Tuesday, September 6, 2011

Trek to the Kamrunag Temple - रतन यक्ष की कहानी


Before we start the story, let us get to know a bit about Yakshas (यक्ष), they are high quality, benevolent and demi God type human beings who take care of hidden natural treasures. .

Read Another Adventure: The Kamru Shikari Trek - Hinterlands of Mandi

Although I do not take religious scriptures seriously but I find these stories amusing, hyped, and interesting at the same time. This time we will talk about the religious importance of Dev Kamrunag in the history of Hindu religion and how he could have changed our history. 

Dev Kamrunag's original name was Ratan Yaksh and he was a self learned warrior. He would practice by keeping Lord Vishnu's idol in front of him and he considered it as his master, the Guru. He got to know about the story of Mahabharat being fought in some far corner of Bharat and decided to take part in it. Brave and courageous he was, he decided to fight with the weaker party, which meant he was going to join the army of Kaurav's. Lord Krishan got to know about it, his nexus must be super powerful and he decided to stop the self learned warrior before he could reach the battlefield. Disguised as a yogi, Lord Krishna appeared before the Yaksh. He asked him about his journey and told him about the hardships being experienced by wounded soldiers.
Ratan Yaksh was high on confidence and it strengthened his determination. A worried god decided to make a fool of him. 

The Lord gave him a tough test to find out the potency of his arrows and said, "I will be convinced if you can pierce every leaf of that enormous peepal tree with thy arrow." When the Yaksh was preparing his arrow, the Lord plucked some leaves and hid them in his closed fists. To his surprise the arrow pierced even the leaves in his fists. Then Lord Krishan asked him about his guru, upon which the Yaksh replied it to be no one but the almighty himself. And there Lord Krishan spotted an opening, transformed into his actual formless eternal form, and asked the young man for Gurudakshina, fee for services he had never offered to his student. The yaksh could not resist and he had to offer what the Lord had asked for, his head. He gave away his head and asked the Lord to keep it alive until the Great War was over. The Lord immediately agreed and blessed him with the same, his head was brought to the Kamru Hill and today it is known as Kamrunag Temple. Legend also says that the head was kept at the Nalsar Lake in Mandi district but because of climatic/physical/economical problems faced by the head, he was shifted on the top of the hill, from where he could see the greatest wars of all time, live and exclusive. 

How to reach Kamrunag Temple, when to go and places of interest can be How to Reach Kamrunag Lake

One can reach Kamrunag either from Rohanda, which is a two hour steep trek, or from the Jalpa Temple via Chailchowk. The Balh Valley, the Baggi canal, and the cloudy roads make the ride unforgettable. Reaching Jalpa Temple from Sundernagar is a matter of not more than three hours. The Jalpa Temple is located at the dead-end of the road. The temple is built in Pagoda Style and there is a strange story associated with it. In those parts of Himachal, construction work of any temple should be done without eating anything but fruits. Few years ago, when the temple was almost complete, the laborers worked on eat after they had their full course meal and the temple fell down the very next day. It was reconstructed again and today it is one of the most beautiful temples in Himachal Pradesh that I have seen. 

 
The Jalpa Temple, trek starts from here, park your vehicles, no one would touch them even after you come after weeks.

The plan was changed at the last moment and instead of going via Rohanda, we decided to take the better and more beautiful road via the Balh Valley and Chailchowk town. 

 
Above the clouds, The Balh valley

 
The Baggi Canal, all the way it goes from Pandoh to Sundernagar and a major portion of it is underground.

Beautiful Baggi Canal

From Jalpa temple, it takes four hours to reach the temple and the trek is quite difficult for the likes of me. I remember going through the same route few years ago when I was a teenager. My brother tried to chase away a leopard thinking it to be a dog. Anyways, there are not many landmarks on the way. One of the landmarks is Jhaur (झौर), which is a shallow hole that never runs out of water. The hole is not deeper than 50 cm and it remains covered with leaves, however the water coming out of it can be taken to any testing ab across the country and it will come 100 times purer than any brand of water. 

  झौर, the reservoir that never runs out of water
The second landmark is Khunda (खुंडा), which marks the start of the boundary of the Dev Kamrunag. Few years ago, taking shoes, leather items, and other prohibited things was not allowed beyond this point. People used to walk the last 500 meters barefoot. But religion changes with time, flexible rules were slipped in and now you can walk all the way to the top of the hill without leaving any of your stuff behind. 

 
A Cloudy Sunday

 
 खुंडा

Do not expect the modern amenities to be present anywhere close to the Kamarunag Lake. It is one of the lakes in Himachal Pradesh where you can actually find yourself in the wild. It is believed that the lake contains gold and silver worth lakhs as Devta accepts donation only in the form of gold and silver and that too thrown in the lake. 



The Kamrunag Lake and the Temple
 


P.S. If you happen to visit Sundernagar at night, you are requested to ride/drive round the lake. I did it for the first time in my 25 years of existence, its my hometown, and I can only request you to take a ride because I can't explain everything in words. 


 Out of petrol. The Bajaj Chetak key cannot open the petrol tank though it can switch it on. Stranded outside a petrol pump waiting for the key
(Adventure never leaves me | Adventure never kills me)

P.P.S. Ever tried riding a Royal Enfield with a Bajaj Chetak's key? Well it works and works well, when you lose your keys, just it does not open the petrol tank, so when you run out of petrol, you park in front of the petrol pump and wait for someone to get you the duplicate keys. You do not even have battery in your mobile phone but you have the money and believe me money won't buy you everything, always.

Friday, September 2, 2011

Destination Sach Pass (साच पास ) - The Toughest -(Return via Jot Pass)



It was cold and our brains stopped working and just two kilometers before the Sach Pass, we thought that we had reached at the top of the pass, courtesy this image.

I imagined this to be the top of the pass, we reached this spot, obviously snow walls were not this much high.
We stopped our motorcycle and looked around us, it was all snow and stones lying hither-thither, forming a randomly organized symmetrical pattern. It was a silent agreement between us that we [can] not go beyond Sach Pass into the Pangi Valley considering the road conditions and limited number of days we had.

However, we kept on riding and saw two shepherds walking towards the pass top. Upon inquiring, we got to know that we were about to do one of the biggest mistakes of our life. However, we were lucky enough to find them and the ride continued further. A temple, an emergency shed, and snow all around, that comprise the Sach Pass.

Herd of 1800. The trail lasted 500 meters, near Kalaban


If the road closes down at this point from both sides, there is plenty of snow all around. Either you eat snow, or it will eat you. Approaching Kalaban, 3500 meters (approx.)

While coming back, we wanted to capture some photographs but nature has its own ways. The near zero visibility was now absolute zero visibility and we were [partially] glad that we could see the road. We somehow managed to ride downhill and reached at the Police check-post at Satrundi. Kilad was still 75 kilometers away from the top of the pass and roads conditions were not going to be better until we had reached Keylong. The decision of coming back was good and sensible. From all my journeys and mountain rides, I have realized one thing, bravery is good but overwhelming decisions often hurt you. It is always advisable to fall back if you have slightest of the doubts because with doubts, you don’t and should not mess with the Himalayas. 

Dhaba at Satrundi was unlike other dhabas I have seen because the rates were not sky-high. One more thing I have realized that there is a huge difference between a tourist and a घुमक्कड़  . A tourist plans a tour once in a year or may be twice. He can afford to pay INR 15 for a cup of tea but for a घुमक्कड़, such things become difficult. If you drink one tea every 50 kilometers then it turns out to be 15 cups of tea for 750 kilometers, total distance traveled in the journey was 750 km. Now, for two it becomes 30 cups of tea, which means INR 450 spent exclusively on tea, which can buy you at least 6 liter of gasoline with which you can ride 210 more kilometers with an average of 35 kmpl. Similarly food, water, accommodation, and alcohol costs accumulate and you reach an amount equivalent to EMI of your two or three wheeler. Now all this might sound very cheap talk to tourists but ask a ghumakkad and he will understand all these figures and facts instantaneously. 

So coming to the point, that dhaba was a good place to eat, dine, and drink. I did not inquire about night accommodation but I am sure if one is coming back from Sach Pass and it is late in the evening, say post 5 P.M., stop your journey at Satrundi itself. We had plenty of time with us and we decided to go to Chamba on the very same day so that we could go to the Jot Pass, which was not included in the original plan. The roads are not bad in Chamba just that they are narrow. Until Tissa village, roads were single lane and from Tissa to Chamba, the roads can be termed anything between one & half lane and double lane. 

However, we had borrowed sweaters from our friends and we had to say goodbyes too, so we had to go back to Surangani. It ate our one hour and by the time we left for Chamba, it was already 8 P.M. We lost our way twice or may be thrice, and reached Chamba by 9 P.M. To my surprise, almost everyone knew about us, our travel stories and our eating and food habits as well, and I could not hide my joy. The drinking sessions continued, and for the first time in my life, I was not offered a drink at a new place, obviously they knew about my teetotalism as well. 

When we are desperate to finish a journey, the kilometers never come to an end. As they always say, the last few kilometers always hurt and they always do. Motorcycle rides in the hilly regions should never be time bound because if you are running after time, chances of you killing yourself in an accident are every high. We were riding as fast as 75kmph from Tissa to Chamba and the destination was nowhere to be seen. We slowed down our speed else it could have slowed down our lives. 

Moving forward, we left for Hamirpur early in the morning [8 A.M] and the plans had changed overnight. We decided to go to Khajjiar because JP loves that place. He kept clicking photographs and he remained busy for more than two hours. His face was beaming with joy when he was coming back; after all one place changing moods with every passing minute is all that a photographer needs. Khajjiar Lake changed its colors, shades, reflections, and appearance many times that day. However, we were not lucky enough to see the Manimahesh Kailash, as it is believed that lucky ones get to see the peak of the Manimahesh Kailash located in the Bharmour region of Chamba. We left for Jot Pass in the afternoon, kept looking for free food stalls, in the name of gods obviously.

The Khajji Cottage. (हनीमून हो तो यहाँ हो)

The Khajjiar Lake. The Lake no more exists.


(Green Grass)

115 feet Lord Shiva near Khajjiar. Super awesomeness \,.,./

Jot Pass stands at a height of 2880 meters above the sea level. One wise man once said that without crossing over the Jot Pass you never get to know what reaching Chamba means. Jot Pass overlooks the Chuwadi Valley and it is 23 kilometers away from the top of the Pass.

 
At 2800 meters above the MSL, Jot Pass, Chamba. (Zero Visibility)

!Boom Shiva!

Luckily for us, it did not rain anywhere in the Chamba district but as soon as we left Chamba, it started raining and we were all drenched once again. There are two ways to look at it a) it rained when the journey was almost over and b) it rained only when the journey was almost over. Had it rained in Chamba we could have found ourselves riding another 150 kilometers extra. Had it rained in Tissa or Surangani or at the Sach Pass top, we could have found ourselves buried in the landslides. 

It is always good in the end and if it is not good, it is not the end, someone said once.

This trip changed my definitions and perceptions about passes. For me, Rohtang Pass was the toughest pass but Sach Pass has forced me to change my reference points with regard to the toughest pass of Himachal [as of now] Now, I am 100% sure that once we head into the Pangi Valley, our definitions of risk, danger and fog are going to change forever.

P.S. This was our cheapest trip ever. We [had to] spend only on petrol. Usually, each of our ride costs us INR 5-6k.

P.P.S. Going to one of the most beautiful valleys of Himachal - The Balh-Janjehli Vally.