बचपन में ध्रुव, डोगा, और नागराज की कॉमिक्स पढ़ा करता था [आज भी पढता हूँ], और मेरी हरकतें भी उनकी तरह ही हो जाया करतीं थीं [आज भी हैं] , गाड़ियों के नंबर, माईल-स्टोंस, बसों के रूट सब एकदम से याद हो जाया करते थे| बस ऐसे ही तीन रूट मेरे दिलो दिमाग पे छाए रहे, एक था डाडासीबा से शिमला, और दूसरा हारसिपत्तन से दिल्ली | मैं सोचता रहता था की क्या गज़ब नाम है, जगह भी जबरदस्त होगी, बड़ा मन हुआ करता था जाने का क्यूंकि नाम ही ऐसा गजब है, डाडासीबा, ऐसा लगता है जैसे बोम्ब बनाने की फैक्ट्री हो उधर कोई, पर बचपन में बाउजी के पास स्कूटर हुआ करता था तो स्कूटर पे डाडासीबा तो जाया नहीं गया | अभी हाल ही में मेरा एक दोस्त होके आया डाडासीबा और उसने जिस तरीके से एक्सप्लेन किया, रहा नहीं गया और पहुँच गए डाडासीबा |
डाडासीबा एक छोटा सा गाँव है काँगड़ा डिस्ट्रिक्ट में, और वहां के बाशिंदे कहते हैं कि पूरी दुनिया डेवेलप हो जाएगी, पर डाडासीबा का कुछ नहीं हो सकता, देख के तो यही लगा कि सच ही कहते हैं | डाडासीबा पहुंचना हो तो जवालाजी से निकल जाओ देहरा कि तरफ और वहां से तलवाड़ा रोड पे निकल लो, किसी भी माईल स्टोन पे डाडासीबा नहीं लिखा होगा, पर घबराने कि जरुरत नहीं है सीधी सड़क है, चलते जाओ, डाडासीबा जब आएगा तो पता चल जाएगा | जब ये बता पाना मुश्किल हो जाए कि सड़क में खड्ड आ गयी या खड्ड में सड़क बना दी गयी है , तो समझ लो कि डाडासीबा आ गया | पर कुछ अच्छा पाना हो तो कष्ट भोगने ही पड़ते हैं, तो जैसे ही डाडासीबा पहुँचो आपको दिखता है महाराजा रणजीत सागर डैम, जिसके ऊपर पौंग डैम बना हुआ है | जिन लोगों ने मुंबई देखा हुआ है उनको लगता है कि मुंबई का बीच आ गया और जिन्होंने नहीं देखा हो, उनको लगता है कि मुंबई ऐसा ही होगा|
मल्लाह, किश्ती, और डाडासीबा की एक शाम
डाडासीबा @ इट्स बेस्ट
लोनली प्लानेट
दूर दूर तक देख लो, पानी ही दिखेगा, जमीन नहीं दिखती, आसमान और जमीन में फरक नहीं दिखता| हम जब पहुंचे तो सूरज ढल चुका था, पानी सुनहरे रंग का हो चुका था और दूर पानी में मछली पकड़ने वाला जाल फेंक और खींच रहा था | मेरे ज़हन में सिर्फ एक आवाज़ गूँज रही थी " डा डा सिबा " | जगह का नाम और आँखों के सामने का नजारा बिलकुल राज कॉमिक्स कि कहानियों का कोई गाँव लग रहा था | वहां कैम्पिंग और बोन-फायर करने का बड़ा आनंद आएगा , मछली पकड़ने की कला आती हो तो वहीँ पकड़ो, भूनो और ओल्ड मोंक के साथ खा जाओ|
डाडासीबा से निकले हम एक और बचपन कि याद को ताज़ा करने, आशापुरी मंदिर, वहां से कहते हैं किस्मत वाले दिन सारा हमीरपुर, बिलासपुर, और रंजित सागर दिखता है, पर अपनी किस्मत हमेशा अगले कल ही आती है सो वैसा ही उस दिन हुआ | दिन दोपहर में पहुँच गए आशापुरी लेकिन आसमान में बादल थे तो कुछ नहीं दिखाई दिया, बस ब्यास नदी दिख रही थी पहाड़ियों को काटती हुई | आशापुरी का मंदिर पहाड़ी कि चोटी पे है और ये मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कि प्रोपर्टी है | सुनिए इस मंदिर कि कुछ विशेषताएं :
कहते हैं ये मंदिर बैजनाथ के प्रसिद्द शिव मंदिर के साथ का बना हुआ है | यहाँ रहने के लिए कोई सराय/धरमशाला नहीं है लेकिन वहां लोगों कि दुकानों में रहा जा सकता है | दूर दूर से लोग आते हैं यहाँ क्यूंकि यहाँ काफी लोगों कि कुलदेवी है, शिमला, नालागढ़, बरोटीवाला, सोलन, ये कुलदेवी सेलेक्ट कैसे होती है ये नहीं पता पर पहुँच बड़ी है इस मंदिर की| अन्दर किसी ब्रिटिश महाराजा के दो सिक्के (coins) गड़े हुए हैं, पुजारी परिवार की मानें तो अंग्रेजों ने इस मंदिर में स्वयम्भू पिंडी को तोड़ने के लिए सिपाही भेजे, सिपाहियों ने भरपूर जोर आजमाइश की लेकिन पिंडी नहीं उखड़ी, हाँ पिंडी के नीचे से मधुमखियाँ निकली, जिन्होंने सैनिकों को मार भगाया | फिर तबसे ब्रिटिश लोग भी मंदिर की महिमा को मानने लगे, कितना सच-कितना झूठ इसपे गौर न करें तो स्टोरी काफी इंटरेस्टिंग है | समय के साथ ये मंदिर विखंडित होने लग पड़ा और रही सही कसर पुरातत्व विभाग ने पूरी कर दी, मंदिर की नक्काशी की हुई छत पे कंक्रीट चढ़ा दिया गया है और अब ये मंदिर पुराना कम और कम पैसे लेके घटिया ठेकेदार से बनवाया हुआ ज्यादा लगता है |
हिमाचल प्रदेश ग्रामीण क्षेत्र की सबसे बड़ी पेयजल योजना,भडारण क्षमता - १६ लाख लीटर ,जयसिंहपुर
आशापुरी मंदिर
नक्काशी की हुई मंदिर की दीवार
पुरातत्व विभाग का चमत्कार, मंदिर की छत का बेडा गरक कर दिया गया है
इससे भी जबरदस्त है वैष्णो देवी गुफा जो कि मंदिर से पांच किलोमीटर की दूरी पर है , गुफा में है एक गर्भ द्वार और यकीन मानिये वो गर्भ के द्वार जितना ही छोटा है | पुजारी बाबा उसे गर्भ जून कह रहा था और उस गुफा की ओपनिंग देख के मुझे हल्का सा डर लगा की इसमें फंस गए तो मारे जायेंगे | मुझे याद है २००२ में मेरी माँ भी घुसी थी इस गुफा में और फंस गयी थी, पर मुझमे और मेरी माँ में "एक बटा दो" का फरक है तो मुझे लगा की मैं नहीं फंस सकता | गुफा द्वार में घुसने से पुण्य मिलता है ऐसा बाबा का कहना था, मुझे पुण्य मिला या नहीं पर बाय गाड मजा बड़ा आया | उसी गुफा के ऊपर है कैलाश पर्वत,एकदम नेचुरल मेड| ऐसा लगता है कैलाश का प्रोटोटाइप रखा हो प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनाके | वो पूरी चट्टान बड़े अजीब तरीके से टिकी हुई है और मुझे ऐसा लगा की कभी भी गिर जाएगी पर नहीं गिरती तो नहीं गिरती | उस चट्टान के ऊपर सड़क भी बनी हुई है, सोने पे सुहागा |
कैलाश पर्वत, इसने चट्टान को जैसे अपने ऊपर संभाल लिया है
गर्भ द्वार के उस पार , इस छेद से उस पार जाने में हवा टाईट हो जाती है
तबला, डमरू, चिमटा, और कैलाश पर्वत सब अवेलेबल है यहाँ
गुफा के अन्दर पुजारी बाबा
पत्थर के लड्डू, ऐसे लड्डू गुफा के अन्दर टनों के हिसाब से मौजूद हैं
खैर वहां से निकले तो दो रास्ते हैं जाने के, एक पालमपुर होके, और एक सुजानपुर-जयसिंहपुर होके , लेकिन हमें तीसरा रास्ता दिख गया था, चढ़ियार - हारसिपत्तन से जाने का और मजे कि बात ये कि ये वाला रास्ता स्टेट हाइवे - १७ है, जिसका मतलब सड़क पक्की होगी, एक दो गाँव में सड़क पूरी कंक्रीट कि बनी हुई थी, जो कि हिमाचल में बहुत कम देखने को मिलता है | चढ़ियार कब आया कब गया कुछ पता नहीं चला, यहाँ से एक बस चलती है चढ़ियार -शिमला और मुझे लगता था कि कोई क़स्बा होगा रंग बिरंगा सा, पर चलो जाने दो | खाली सडकें , जंगल , ब्यास का बेसिन, और दूर दूर तक फैले हुए गाँव, एक जगह तो ऐसा लगता है कि जैसे स्पीती में पहुँच गए हों| और फिर आता है हारसिपत्तन, हारसी गाँव है और पत्तन नदी के तट को कहते हैं, यहाँ पर दो गाँवों के नाम को मिलाके एक नाम दिया गया| हारसी पत्तन में कुछ ख़ास नहीं है बस एक पुल है बहुत बड़ा, जिसके एक तरफ काँगड़ा, एक तरफ मंडी और आजू-बाजू में हमीरपुर डिस्ट्रिक्ट पड़ता है | वो पुल बड़ा फेमस है प्रदेश में, ठीक लम्बा चौड़ा पुल है |
वहां पहुँच के मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला, और मेरे दोस्त के हिसाब से वहां कोई प्राचीन मंदिर जरुर होगा क्यूंकि वहां से एक बस चलती है कटड़ा (जम्मू) के लिए, कहने का मतलब ये है कि जिन छोटे छोटे गाँवों से जम्मू-कटड़ा-वैष्णो देवी के लिए बसें चलती हैं, वहां एक सौ प्रतिशत या तो कोई मंदिर होता है, ये रिलीजियस सिग्निफिकेंस होता है, खैर अँधेरा हो चुका था तो मंदिर तो हम नहीं ढूंढ पाए , और कैमरा की बेट्री भी जीरो हो चुकी थी तो न पुल का फोटो खींच पाए और न ही जगहों का, पर यकीन मानिये जब ब्यास का बेसिन दीखता है और ढलता सूरज पूरे आसमान को सुनहरा बना देता है तो ऐसा लगता है जैसे अलिफ़ लैला की कहानियों का कोई गाँव है|
रोयल इनफिल्ड सनसेट , हारसिपत्तन
ट्रेवल रूट:
हमीरपुर- जैसिन्ह्पुर-आशापुरी - 75 किलोमीटर, कच्ची और तंग सड़क, 26 किलोमीटर तक स्टेट हाईवे - 39|
वापसी: आशापुरी - चढ़ियार - हारसिपत्तन - संधोल -सुजानपुर-हमीरपुर , स्टेट हाईवे - 17 , अच्छा मगर तंग रोड |
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