Here is an excerpt from the book, which speaks all about its beauty and depth.
एक बार अंधकार ने भगवान से जाकर प्रार्थना की थी कि यह सूरज तुम्हारा, मेरे पीछे बहुत बुरी तरह से पड़ा हुआ है। मैं बहुत थक गया हूं। सुबह से मेरा पीछा होता है और सांझ मुश्किल से मुझे छोड़ा जाता है। मेरा कसूर क्या है ? कैसी दुश्मनी है यह ? यह सू...रज क्यों मुझे सताने के लिए मेरे पीछे दिन-रात दौड़ता रहता है ? और रात भर में मैं दिनभर की थकान से विश्राम नहीं कर पाता हूं कि फिर सुबह सूरज द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है। फिर भागो ! फिर बचो। यह अनंत काल से चल रहा है। अब मेरे धैर्य की सीमा आ गई और मैं प्रार्थना करता हूं, इस सूरज को समझा दें।
सुनते ही भगवान ने सूरज को बुलाया और कहा कि तुम अंधेरे के पीछे क्यों पड़े रहते हो ? क्या बिगाड़ा है अंधेरे ने तुम्हारा ? क्या है शत्रुता ? क्या है शिकायत ? सूरज कहने लगा, अंधेरा ! अनंत काल हो गया मुझे विश्व का परिभ्रमण करते हुए, लेकिन अब तक अंधेरे से मेरी कोई मुलाकात नहीं हुई। अंधेरे को मैं जानता ही नहीं। कहां है अंधेरा ? आप उसे मेरे सामने बुला दें, तो मैं क्षमा भी मांग लूं और आगे के लिए पहचान लूं कि वह कौन है ताकि उसके प्रति कोई भूल न हो सके।
Osho used to speak in discourses and people would listen. The publishers and his friends will make notes while Osho would speak. This one is also one such book where Osho speaks, people listen and we all gain.
P.S: If you want to avoid interpretations and just enjoy what he says then go to OshoWorld, register yourself and download the audio files. You can listen to them before sleeping and you do not have to judge it, listen to it have fun, sleep well, get up and go to your work next day. No confusions/contradictions with your previous ideologies or thought process.
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3 comments:
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Thanks for giving such a nice info.
I liked the way helplessness of the 'darkness' has been expressed. Usually we think of darkness as 'curel' and 'bad'. Here, it seems to be otherwise. Interesting.
Oye! Hows you?
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